tag:blogger.com,1999:blog-31174000737925615932024-03-05T23:00:34.878-08:00HARMONYThis blog is created to spread Humanism.Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.comBlogger308125tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-54631652093353862502021-06-11T19:30:00.002-07:002021-06-11T19:30:15.013-07:00योग क्या है.. भाग 1,2,3<p> योग -1</p><p>-----</p><p>योग क्या है ? प्रायः लोग योग करने जाते हैं, कुछ आसन करते हैं और कहते हैं कि हम योगा (not योग) करके आ रहे हैं | तो क्या ये आसन ही योग हैं ? अगर ये आसन है (हमें पता है), तो फिर योग क्या है ? क्या योग, आसन के अलावा भी कुछ है ? - ये वो प्रश्न हैं, जो हम बहुधा नहीं विचारते हैं और मानते हैं कि जो हम सुबह पार्क में करके आ रहे हैं, यही so called योगा है | इसके आलवा कुछ और योग हो ही नहीं सकता, क्योंकि हम तो यही जानते हैं और सारी दुनिया यही तो कर रही है | सारी दुनिया गलत तो नहीं हो सकती | </p><p><br /></p><p>प्रश्न तो इनके अलावा भी हैं - यदि यही योग है, तो फिर गीता में बताया गया, भाव योग क्या है ? कर्मयोग क्या है ? ये भी तो योग ही हैं ! इन्हें कोई क्यों नहीं बताता ? इनके अलावा भी योग हैं, जैसे ध्यान योग, भक्ति योग, हठ योग, कुंडलिनी योग, सहज योग | फिर ये सब क्या हैं ? जो हम लोग सुबह करके आते हैं, वो इनमें से कौन सा है ? यदि इनमें से नहीं है तो फिर ये योग कौन से हैं और कैसे होते हैं ? देखिये, कितने प्रश्न खड़े हो गए, सिर्फ इसलिए कि हमने सोचना प्रारम्भ किया | </p><p><br /></p><p>पर और सोचते हैं तो ये भी प्रश्न आता है कि और भी तो योगा (not योग) हैं, जैसे लाफ्टर योगा, न्यूड योगा, पॉवर योगा | ये सब क्या हैं ? क्या ये भी योग ही हैं ? अगर हाँ, तो कैसे और अगर नहीं तो क्यों नहीं ? </p><p><br /></p><p>आपको यदि ज्ञानी होना है तो पहली शर्त है, जिज्ञासु होना क्योंकि कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि ज्ञान जिज्ञासु को मिलता है | अन्यथा आप जो रोज करते हैं, करते रहिये, बिना ये जाने कि हम ये क्यों कर रहे हैं ? ये कौन सा योग है ? यदि यही योग है, जिसकी शास्त्रों में बड़ी महत्ता बतायी गयी है तो क्या योग का उद्देश्य मात्र इतना है कि शरीर स्वास्थ्य रहे ? इतना छोटा उद्देश्य ? जबकि शरीर तो सबका बूढा होता है, शरीर में वात, पित्त और कफ की व्याधि तो सदैव उपस्थित है, तो क्या हम कह सकते हैं कि आसन (तथाकथित योग) करने वाले को कोई बीमारी नहीं होती, वो बूढा नहीं होता ! यदि फिर भी मनुष्य बूढा होता ही है, फिर भी बीमारियाँ होती ही हैं तो फिर इस प्रकार के योग का क्या लाभ ? क्या योग का उद्देश्य इतना छोटा ही है, जितना हम समझ रहे है ! </p><p><br /></p><p>ये प्रश्न हैं, जो हमें योग की बात करते समय, आसन (so called योगा) करते समय विचारने चाहिये | इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिये अगले कुछ दिन बात करेंगे, योग की | सबसे पहला प्रश्न है कि योग क्या है ? </p><p><br /></p><p>योग का अर्थ है - addition अर्थात जोड़ | किससे किसका जोड़ ? योग तो सदैव कम से कम दो चीजों का होगा | तो यहाँ किससे, किसको जोड़ने की बात की जा रही है | यहाँ बात की जा रही है, बाहर से भीतर को जोड़ने की | जब आप बाहर से, भीतर को जोड़ते हैं तब होता है, योग | यह संसार योग से ही चल रहा है | दो चीजें मिलती हैं, तो तीसरी चीज बनती है | मनुष्य स्त्री मिलते हैं तो संतान होती है | पॉजिटिव और नेगेटिव मिलते हैं तो एनर्जी क्रिएट होती है | ऑक्सीजन और हाइड्रोजन मिला दो, तो पानी बन जाता है | ऐसे ही चीजें जुडती रहती है और नयी नयी चीजें बनती रहती हैं | ऐसे ही बाहर और भीतर को जोड़ने से, योग करने से, शक्ति पैदा होती है, तेज पैदा होता है | और ये शक्ति इतनी भी हो सकती है, जितनी ब्रह्मा है, जितनी ईश्वर में है | ऐसे ही योगियों के लिये कहा जाता है - अहम् ब्रह्मास्मि | सो ऐसा करने के लिये, इस स्थिति में पहुचने के लिये योग किया जाता है | ये तो हो गया योग का उद्देश्य | </p><p><br /></p><p>लेकिन हम बाहर से भीतर को जोड़ कब पायेंगे ? तब, जब हमें पता होगा कि बाहर क्या है ? और भीतर क्या है ? यदि हमें यही नहीं पता कि बाहर क्या है और भीतर क्या है, तो हम योग कैसे कर सकतें हैं ? अर्थात नहीं कर सकते | अतः योग करने के लिये पहले ये जानना पड़ेगा कि बाहर क्या है और भीतर क्या है ? पहले बात करते हैं, भीतर की | भीतर क्या है ? इस शरीर में क्या क्या है ? यह शरीर २४ तत्वों से मिलकर बना है | </p><p><br /></p><p>5 महाभूत, 5 कर्मेन्द्रिय, 5 ज्ञानेन्द्रिय, 5 तन्मात्रा, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार | ये सब क्या हैं ? कैसे काम करते हैं ? मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार क्या होता है ? कैसे काम करता है ? ये सब जानने के लिये, आपको कुछ खास नहीं करना है, बस कमेन्ट में अगले भाग के लिये लिखना है क्योंकि इस ग्रुप में नेगेटिव कमेन्ट अधिक आते हैं अतः यदि अगला भाग मांगने वालों के कमेन्ट अधिक आएंगे तो अगला भाग आयेगा अन्यथा नहीं आयेगा । आखिर योग सब करते हैं सो योग जानना भी सभी को चाहिए | प्रैक्टिकल तब ही हो पायेगा, जब थ्योरी क्लियर होगी अन्यथा हम exercise को ही योगा समझते रह जायेंगे और उससे असली फायदा नहीं उठा पायेंगे | यदि आप जानना चाहते हैं, तो कमेन्ट अवश्य करें ।</p><p>योग - 2</p><p>पिछले भाग में बताया था कि योग मतलब जोड़ना | अंदर से बाहर को जोड़ना ही योग है | जब हम पार्क में कुछ करने जाते हैं तो यदि हम अंदर से बाहर को नहीं जोड़ रहे हैं, तो वो कुछ भी हो सकता है, पर योग नहीं हो सकता | जैसे, लाफ्टर योग - इस में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं होती, जिसमें हम अंदर से बाहर को जोड़ने का कोई प्रयास करते हों | अतः ये exercise कुछ भी हो सकती है, लेकिन योग नहीं हो सकती है | ऐसे ही न्यूड योग भी, कोई योग नहीं है | कल को कोई कहे कि साहब, मैं तो दिन भर बहुत मेहनत करता हूँ, मुझे योग की आवश्यकता ही नहीं है, इसका अर्थ क्या है ? इसका अर्थ है कि वो योग माने, व्यायाम/exercise ही समझ रहा है | जबकि मैं पूरे दिन पार्क में चक्कर लगा लूं, कोई आसन कर लूं पर यदि अंदर और बाहर को एक नहीं कर रहा हूँ तो वो योग नहीं है, भले ही आप उसे कुछ भी नाम दे दीजिये, वो कुछ भी हो सकता है पर योग नहीं हो सकता है | जैसे आजकल लोग, हंसने को लाफ्टर योग कहते हैं पर ये लंग्स के लिए/दिमाग के लिए व्यायाम तो हो सकता है पर ये योग भी है, ऐसा नहीं कह सकते | कल को कोई इसी तरह से, दीवार में सिर मारने को भी योग बता दे कि ये नए तरह का योग है, मस्तक-प्रस्तर योग तो क्या मान लेना चाहिए .. ? शायद अब आपको उत्तर पता है क्योंकि अब आप जानते हैं कि योग का अर्थ है, भीतर को बाहर से जोड़ना, एक करना | </p><p><br /></p><p>अतः अब इतना स्पष्ट तो हो गया कि योग क्या होता है और कौन से so called, योगा - योग नहीं हैं | पर मुद्दा तो ये भी है कि अंदर से बाहर को एक करें कैसे ? अंदर से बाहर को एकरूप तब ही कर पायेंगे, जब जानेगे कि अंदर क्या है और बाहर क्या है ! जब यही नहीं पता कि अंदर क्या है और बाहर क्या है तो फिर योग कैसे करेंगे ? आपके घर में TV हो, पर आपको उसका रिमोट ही चलाना न आता हो, तो आप वो TV नहीं चला सकते | यदि आपको क्लच, ब्रेक और एक्सेलरेटर नहीं पता है, तो आप कार नहीं चला सकते | अतः पहले अन्दर और बाहर को जानना होगा, तब ही आप योग कर सकते हैं | अतः पहले अंदर की बात करते हैं | </p><p><br /></p><p>हमारे यहाँ शरीर को 24 तत्वों से मिलकर बना, बताया गया है | तत्व माने क्या है ? अंग्रेजी में इसे कहते हैं - एलिमेंट | मेंद्लीफ़ ने एक आवर्त सारणी बनाई, जिसमें उसने बताया कि कुल 112 प्रकार के तत्व हैं, जिनसे सारी दुनिया बनी है | सभी प्रकार के यौगिक और पदार्थ इन 112 तत्वों से मिलकर बने हैं | हमारे ऋषियों ने बताया कि नहीं, 112 नहीं है, मात्र 24 ही हैं | हांलाकि फिर उन 24 की भी बाल की खाल निकाली गयी है कि 24 नहीं, 5 हैं, 5 नहीं, 2 हैं और 2 नहीं एक है | पर अभी बात शरीर की हो रही है, सो शरीर को 24 तत्वों से मिलकर बनाया हुआ बताया गया है | जिन्होंने इस लेख से पहले 24 तत्वों के नाम नहीं सुने हैं, वो निसंकोच कमेन्ट में ये बात स्वीकार करें कि उन्हें नहीं पता है | (ये स्वीकार करना कि नहीं पता है, ज्ञान की दिशा में पहला कदम है |)</p><p><br /></p><p>सो 24 तत्वों में आते हैं 5 महाभूत, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 ज्ञानेन्द्रियाँ, 5 तन्मात्राएँ और मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार | 5 महाभूत - पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि | ये 5 महाभूत हैं, जिनसे शरीर बना है | पृथ्वी तत्त्व से, घ्राणेंद्रिय (नाक के अंदर की हड्डी) | जल तत्व से, रसना | रसना माने जीभ, रसना तो पिया ही होगा, हैं न | सो रसना माने जीभ | आकाश तत्व से, कान और अन्य शारीरिक छिद्र | वायु से त्वचा (त्वचा में रोमछिद्र होते हैं न, वो भी सांस लेते हैं |) और अग्नि तत्व से - आँखें | आँखें, अग्नि तत्व से बनी हैं, इसीलिए इनको नेत्र ज्योति कहते हैं | होने को तो पेट में भी जठराग्नि होती है किन्तु यहाँ शरीर के अंग बताये जा रहे हैं सो अग्नि तत्व से आँख बनी है |</p><p><br /></p><p>सो, इस प्रकार इन 5 महाभूत से, शरीर के विभिन्न अंग बने हैं | इसके अलावा, शरीर में 5 ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं | ज्ञानेद्रियाँ अर्थात, जिनसे ज्ञान होता है | 5 ज्ञानेद्रियाँ - नाक - सूंघती है (सांस भी तो लेती है ?) | आँख - देखती है | कान - सुनते हैं | जीभ - स्वाद बताती है | त्वचा - स्पर्श करती है | आप दुनिया कि किसी भी चीज का ज्ञान, इन्हीं 5 इन्द्रियों से करते हैं | या तो आप उसे सूंघ कर बताते हैं कि वो खुशबूदार है या बदबूदार | आँख से आप किसी भी चीज का रूप (रंग, शेप आदि) देख पाते हैं सो उससे भी ज्ञान होता है | कान से आप शब्दों को सुनते हैं, चाहे वो किसी धातु का गिरना हो, किसी का बोलना हो, किसी का चीखना हो | आप कानों से सुन कर ज्ञान करते हैं कि ये शब्द किस चीज का है, ये कुत्ते की आवाज है, ये बच्चे की आवाज है, ये किसी बीमार व्यक्ति की आवाज है, ये आप बिना देखे, मात्र सुनकर बता सकते हैं अतः कानों से भी ज्ञान होता है | कान से indirectly दिशाज्ञान भी होता है कि आवाज किस तरफ से आ रही है | कोई आवाज पीछे से आयी अथवा किस दिशा से आई, ये भी पता चलता है लेकिन ये मुख्य गुण नहीं है, मुख्य गुण है - शब्द सुनना |</p><p><br /></p><p>जीभ से आप पता कर सकते हैं कि कोई चीज मीठी है, खट्टी है, चटपटी है, मसालेदार है इत्यादि अतः इससे भी ज्ञान होता है | त्वचा से आप स्पर्श करके पता करते हैं कि कोई चीज ठंडी है या गर्म है | ठोस है या मुलायम है | इस प्रकार का ज्ञान आपको त्वचा से ही होता है | अतः इस प्रकार, ये 5 ज्ञानेन्द्रियाँ हो गयी |</p><p><br /></p><p>लेकिन तन्मात्रा क्या हैं ? ज्ञान कैसे होता है ? मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार क्या होता है ? ये सब क्या काम करते है ? ये सब हम जानेंगे, इस लेखमाला के अगले भाग में | आखिर योग सब करते हैं सो योग जानना भी सभी को चाहिए | प्रैक्टिकल तब ही हो पायेगा, जब थ्योरी क्लियर होगी अन्यथा हम exercise को ही योग समझते रह जायेंगे और उससे असली फायदा नहीं उठा पायेंगे | पुनः इस ग्रुप पर नेगेटिव कमेन्ट बहुत आते हैं, कल भी आये थे, पर पॉजिटिव कमेन्ट और नया जानने वालों के भी कमेन्ट आये सो ये भाग आया, ऐसे ही अगला भाग भी तब ही आयेगा, जब इस ग्रुप के सदस्यों को इसकी आवश्यकता होगी और वो कमेन्ट करके बतायेंगे |</p><p><br /></p><p>योग 3 </p><p>पिछले भागों में हमने ये जाना कि योग क्या होता है और योग क्या नहीं होता है ? हमने ये भी जाना कि लाफ्टर योगा, योग क्यों नहीं है, न्यूड योगा, योग क्यों नहीं है या केवल आसन करना योग क्यों नहीं है | हमने ये भी समझा कि बिना शरीर को समझे, योग करना संभव नहीं है | इसीलिए हमने शरीर के 24 तत्त्वों में से 10 तत्वों की चर्चा की, जिसमें हमने 5 महाभूत और 5 ज्ञानेन्द्रियों की चर्चा की | (जिन्होंने पहले २ भाग न पढ़े हों, वो कमेन्ट करके लिंक लेकर पढ़ सकते हैं) अब उससे आगे </p><p><br /></p><p>हमें संसार में जो कुछ भी ज्ञान होता है, वो इन 5 ज्ञानेन्द्रियों से ही होता है | या तो हम किसी चीज को छू कर महसूस करते हैं कि ठोस है या सॉफ्ट, या फिर गर्म है या ठंडी | या फिर हम चीजों को सूंघ कर महसूस करते हैं, खुशबूदार है या बदबूदार है | या फिर हम चीजों को देख कर उनके रूप (रंग, आकार आदि) के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं | या फिर हम चीजों के शब्द सुनकर उनके बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं | मेटल के गिरने का शब्द अलग होगा और लकड़ी के गिरने का अलग | बच्चे के रोने की आवाज अलग होगी और कुत्ते के भौकने की अलग | इस प्रकार हमें जो कुछ भी ज्ञान होता है, वो इन 5 ज्ञानेन्द्रियों से ही होता है | ज्ञान प्राप्ति का और कोई छठा साधन नहीं है | लेकिन 5 ज्ञानेन्द्रियों (आँख, नाक, कान, त्वचा और जीभ) से हमें जो ज्ञान होता है, वो कैसे होता है ? क्या आँख को पता है कि जो फोटो खींचा है, वो सही खिंचा है या नहीं ? क्या कान को पता है, कि कौन सी आवाज कुत्ते की है और कौन सी आदमी की ? उत्तर है ..... नहीं ! </p><p> </p><p>ये पाँचों तो मात्र एक प्रकार के सेंसर हैं, जो सिर्फ सेन्स करते हैं | आँख तो जैसे एक कैमरा है, जैसे कैमरे को नहीं पता कि फोटो अच्छी है या खराब ऐसे ही इस आँख को नहीं पता कि फोटो अच्छी है या खराब | कोई चीज गोरी है या काली, कोई चीज लम्बी है या छोटी, ये सब आँख को नहीं पता | ये तो मात्र केमरा है | ये सब बातें बताता है, हमारा मन | ये ज्ञानेन्द्रियाँ, सब प्रकार की इनफार्मेशन मन को भेजती हैं और फिर मन बताता है कि ये चीज गोरी है या काली | ये दिन है या रात | आँख को वास्तव में कुछ नहीं पता | ऐसे ही कान सिर्फ डाटा भेजता है, नाक सिर्फ डाटा भेजती है | ये सब सेंसर हैं, जिन्हें हम ग्यानेंद्रीयाँ कहते हैं | ये जो ज्ञानेन्द्रियों से इनफार्मेशन मन के पास जाती हैं, इसे कहते हैं तन्मात्रा | क्या कहते हैं ? ........तन्मात्रा |</p><p><br /></p><p>तन्मात्रा माने क्या ? तन्मात्रा माने कि दुनिया में जो कुछ है, उसका डाटा, हमारे शरीर में पहले से मौजूद है, इन तन्मात्राओं के रूप में | इसे आप कह सकते हैं quantification. और आसानी से समझते हैं | कोई चीज कितनी गोरी है या कितनी काली है ? ये आपको कैसे पता चलता है ? </p><p><br /></p><p>क्योंकि सफ़ेद और काले रंग के सभी शेड्स हमारे अन्दर पहले से मौजूद हैं | जैसे अधिक पिक्सेल वाले टीवी में, अधिक शेड्स आते हैं वैसे ही हमारे शरीर में सभी शेड्स की इनफार्मेशन पहले से है | हमें पहले से पता है कि ये सफ़ेद है, ये ग्रे है, ये लाइट ग्रे है आदि | आप उनके नाम भले अलग अलग रख लीजिये | उन्हें हिंदी वाला काला बोले, अंग्रेजी वाला ब्लैक या किसी अन्य भाषा में उसे कुछ और कहा जाए, किन्तु हम सबकी आँखें, उस काले को वैसा ही देखेंगी - काला | ठीक वैसे, जैसे कोई चीज कम खुशबूदार है, फूल और कोई चीज ज्यादा खुशबूदार है, परफ्यूम | हमारी नाक को पहले से पता है, कौन सी गंध कम है और कौन सी ज्यादा | कौन सी आवाज धीमी है और कौन सी तेज, ये कान को पता है | ये सब हमें पहले से पता है - तन्मात्राओं की वजह से | जो कुछ संसार में है, उसका ज्ञान हमारे अन्दर पहले से है | जैसे कोई वर्णअंध हो जाता है, अर्थात उसके पिक्सेल खराब हो गए, जैसे टीवी में कभी कभी एक हिस्से के पिक्सेल खराब हो जाते हैं | यदि त्वचा कट जायेगी तो ये इनफार्मेशन मन तक जायेगी, तन्मात्रा से, लेकिन अगर हाथ सुन्न हो जाए तो वो तन्मात्रा काम नहीं करेगी और मन को पता नहीं चलेगा कि हाथ में कट लग गया है |</p><p><br /></p><p>तो जो ज्ञानेन्द्रियों से मन तक इनफार्मेशन जाती है, ये जिसके द्वारा जाती है, उसको हम कहते हैं - तन्मात्रा | शरीर में ग्यान्द्रियाँ जो मन तक इनफार्मेशन पहुचाती हैं, वो है तन्मात्रा और जो चीज, ज्ञानेन्द्रियो के टच में आती है, उसे कहते हैं विषय | यानि बाहर से जब कोई चीज ज्ञानेन्द्रियों तक आई तो वो है, विषय और ज्ञानेन्द्रियों से जो मन तक पहुचाये, वो है तन्मात्रा | अतः संसार में जो कुछ भी है, वो है विषय | ये वही विषय हैं, जिसके बारे में हम कहते हैं, विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा | क्या मतलब है ? संसार के सभी विषयों को मिटा दीजिये, मन के सभी विकारों को मिटा दीजिये और मेरे पापों को हर लीजिये....देवा | हम कभी नहीं सोचते इन छोटी छोटी बातों को, कभी आपने ध्यान दिया है कि विषय माने क्या ! पर अब आपको पता है, विषय माने, कोई भी वो चीज जो, इन्द्रियों के संपर्क में आती है |</p><p><br /></p><p>ये हो गए, शरीर के अन्दर के 15 तत्व किन्तु अभी शरीर पूरा नहीं हुआ है, अभी कर्मेन्द्रियाँ बची हैं और बचा है अन्तःचतुष्टय | किन्तु अब आप समझ चुके हैं कि शरीर को ज्ञान कैसे होता है ? संसार क्या है ? (विषय है), तन्मात्रा क्या है ? शरीर के अन्दर क्या क्या हैं ? आगे जानेंगे, अगले भाग में | आशा है, जानकारी को ग्रहण करके, कहीं नोट कर रहे होंगे और केवल लाइक करके नहीं भाग जायेंगे क्योंकि ये जानकारी, सब जगह उपलब्ध नहीं है | ध्यान रखिये, इस बात को | और हाँ, कमेन्ट करके अवश्य बताएं कि ये योग सीरीज आपको कैसी लग रही है ? क्या इसके आगे बढ़ा जाये, या बस करें ?</p><p>क्रमशः </p><p><br /></p><p>अभिनन्दन शर्मा</p><p>( लेखक विचारक और अघोरी बाबा की गीता, पुस्तक श्रृंखला के लेखक हैं )</p><p><br /></p><p><br /></p>Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-60213887299270593292018-07-17T05:57:00.002-07:002018-07-17T05:57:48.353-07:00साइकोलोजिकल टेस्टिंग <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज संडे मस्ती के तहत अपनी मेंटल एज जाननी चाही अभी सो एक टेस्ट लिया ऑनलाइन ...उसमें रिज़ल्ट आया 28 वर्ष... खुश हुई तो मन ने उकसाया कि दूसरा टेस्ट और लेकर देखूँ... कौन अपना पइसा जा रहा है जेब से... सो दूसरा भी लिया... उसमें रिज़ल्ट आया 50 वर्ष... अब थोड़ा धक्का लगा दिल को ये जानकर कि यह तो फिज़िकल एज से आगे चला गया... फिर तो तीसरा टेस्ट लेना बनता ही था सो तीसरी साइट से तीसरा टेस्ट लिया... इसका रिज़ल्ट दोनों को मात करते हुए आया 60 वर्ष...<br />
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हे मेरे राम!!<br />
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अब अपने आप को तसल्ली तो देनी ही थी व और टेस्ट लेने की इच्छा दम तोड़ चुकी थी... सो गणित की पूर्व छात्रा होने के नाते तीनों परिणामों का औसत निकाल लिया... वह आ गया 46 जो कि मेरी करंट फ़िज़िकल एज भी है... यह देख कर मन को तसल्ली भी मिली और शांति भी... वरना अभी ग़म का दौर छा गया होता....<br />
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सो दोस्तों,<br />
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इतना कुछ बताने के पीछे मेरा उद्देश्य यही है कि कोई भी एक टेस्ट आपको सही तरह से नहीं जांच सकता है...इसलिए इन सायकोमेट्रिक टेस्ट्स के पीछे मत भागो...<br />
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आजकल के प्रायवेट स्कूलों ने इन्हें भी अपने बिज़नेस मोड्यूल में शामिल कर लिया है... मोटी फीस लेकर बाहर से किसी एजेंसी को बुला कर इस तरह की आई क्यू टेस्टिंग बहुत प्रचलित है आजकल के शहरी स्कूलों में जो अधिकतर बच्चों का मनोबल गिराती ही हैं...<br />
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साइंस ऑलम्पियाड, मैथ्स ऑलम्पियाड आदि भी इसी का एक प्रकार हैं... लेकिन माँ बाप , बच्चे और टीचर्स तक इसमें भेड़ बन जाते हैं...<br />
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मत प्रैशराइज़ करो अपने बच्चों को यूँ अन नैसेसरी...<br />
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कोई भी टेस्ट आपके बच्चे के नैचुरल विकास को सही रूप से नहीं आंक सकता है... बच्चे को गलती कर के सीखने का मौका दो...<br />
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मैं यह नहीं कह रही कि ये टेस्ट बेकार होते हैं... लेकिन बच्चे की रुचि और कैपेसिटी अधिक महत्वपूर्ण है...<br />
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हाँ यदि आपको लग रहा है कि आपका बच्चा उसकी उम्र के अन्य बच्चों के कम्पेरिज़न में स्लो लर्नर है तो किसी अच्छे सायकॉलोजिस्ट से उसकी सायकोमेट्रिक टेस्टिंग करवाई जा सकती है अपनी शंका का समाधान करने के लिए... लेकिन याद सिर्फ यही रखिये कि ये टेस्ट सिर्फ टूल हैं... समाधान नहीं...<br />
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समाधान तो हर समस्या का सिर्फ और सिर्फ अपने ही हाथ में है...<br />
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सो हैप्पी ऑनलाइन टेस्टिंग एंड हैप्पी संडे.... :)<br />
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सुनीता<br />
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Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-8050091521426348772018-07-15T19:53:00.001-07:002018-07-15T19:53:19.807-07:00स्लो नेट प्रॉब्लम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज मेमोरीज़ में दिखी इस पोस्ट ने फिर से थॉटफुल बना दिया मुझे.. यह पढ़ कर खयाल आया कि जब दो व्यक्तियों में लड़ाई होती है तब जो गढ़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं उनकी तुलना स्लो नेट के कारण लेट पोस्ट हुए कमेंट /स्टेटस से कर सकते हैं न? 🤔<br />
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वह कमेंट या स्टेटस अब लड़ाई में घी का काम करता है... तो प्रॉब्लम की जड़ कहाँ है?<br />
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वह है नेट के स्लो होने में..<br />
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तो पहली बात तो यह कि जैसे ही नोटिस में आए कि नेट स्लो चल रहा है उस समय कोई कमेंट या स्टेटस पोस्ट मत करो.. दूसरा यदि नेट लंबे समय तक स्लो चल गया है तो किसी पुरानी बात को लेकर जो कि अब महत्वपूर्ण नहीं रह गई है उस पोस्ट को पोस्ट ही मत करो.. तीसरा अगर पोस्ट हो ही गई है और डिलीट भी नहीं हो पा रही और आपको भी रियलाइज़ हो रहा है कि वाकई अब उसकी आवश्यकता नहीं रह गई है और टार्गेटेड व्यक्ति यदि आपके लिए महत्वपूर्ण है तो उस से उस पोस्ट के लिए माफी मांग लो..<br />
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तो भईया मुद्दे की बात यह है कि अपना नेट कनेक्शन ठीक करने की तरफ काम करना होगा बोले तो दोनों को आराम से बैठकर समस्या के उत्पन्न होने के साथ ही उस पर सही टोन और सही शब्दों में एक दूसरे से संवाद करना होगा... और यह भी सामने वाले के लिए नहीं बल्कि अपने मन की शांति के लिए करना है...<br />
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फिर देखो.. आपका नेट भी दनादन दौड़ने लगेगा फुल 4जी स्पीड के साथ.. :)<br />
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सुनीता<br />
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Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-45956245317653486972018-07-07T20:47:00.002-07:002018-07-07T20:47:48.062-07:00आभासी चोरी और डर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जब से इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की क्रांति हुई है और खासकर सोशल मीडिया का बहुतायत में इस्तेमाल शुरू हुआ है तो उसके साथ साथ यह डर भी आया है कि यहाँ से हमारा कुछ सामान चोरी न हो जाय..<br />
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किसिम किसिम के ताले भी ईजाद हो गए हैं आपके हवाई सामानों की रक्षा के लिए..<br />
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अभी कल ही एक मित्र ने एक लिंक भेजा था जिसमें यह बताया गया है कि कुछ एप्स तो आपके स्क्रीन की सब एक्टिविटी तक रिकॉर्ड कर लेती हैं कि आप क्या देख रहे हो या कहाँ क्या लिख रहे हो.. आपके प्राइवेट मैसेज, पर्सनल इन्फॉर्मेशन और पासवर्ड तक भी.. इन शॉर्ट आपका कोई भी डाटा सुरक्षित नहीं है...<br />
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आए दिन हम यह सुनते पढ़ते भी रहते हैं कि आज फलां का अकाउंट हैक करने की कोशिश हुई है या फलां का अकाउंट हैक हो चुका है...<br />
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मैं अक्सर अपनी फोटोज़ आदि बेझिझक पोस्ट करती हूँ और कई बरसों से तो प्रायवेसी भी अक्सर पब्लिक ही रखे हुए हूँ.. तो मेरे भी कुछ सद्मित्र और रिश्तेदार मुझे अक्सर पूछते और सलाह देते रहते हैं कि क्या तुम्हें 'डर' नहीं लगता कि कोई इनका गलत इस्तेमाल कर सकता है? क्यूँ तुम प्रायवेसी को स्ट्रिक्ट नहीं करती?<br />
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इन सब सवालों का मेरे पास एक ही जवाब होता है कि पहला तो यह कि जब रियल वाली दुनिया में ही कुछ सुरक्षित नहीं है तो यह तो आभासी दुनिया है...<br />
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यदि आप अपने आप को होशियार समझते हैं तो यह भी आपको पता होगा कि फिर चोर तो होशियारी या अपने काम की काबिलियत में आपसे सौ कदम आगे ही होगा.. है न?.. :)<br />
<br />
दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं उन सबसे कहती हूँ वह ये कि जब तक कोई बात आपके अपने मन के भीतर है सिर्फ़ और सिर्फ़ तब तक ही वह सुरक्षित है.. यदि एक बार भी वह बाहर आ गयी.. चाहे कहीं भी और कैसे भी... लिख कर या बोल कर...कागज़ पर या स्क्रीन पर या किसी के कान में... फिर वह सुरक्षित नहीं रह जाती है तो ऐसे में यदि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हो तब तो सुरक्षा को तो भूल ही जाओ... और बिंदास हो कर अपनी बात अपनी फोटो आदि दुनिया के सामने लाओ न कि डर डर कर..<br />
<br />
तब ही शांति से जी पाओगे वरना हर घड़ी चोरी का डर आपके भीतर बहुत एन्ग्जायटी क्रिएट कर देगा...<br />
<br />
यहाँ एक बात क्लियर कर दूँ कि बिंदास होने का मतलब लापरवाह होना नहीं है...अपनी ज़िम्मेवारी का अहसास तो आपको खुद को होना ही चाहिए..<br />
<br />
महत्वपूर्ण यह है कि यदि आपमें और आपके लख्ते जिगरों में आपसी विश्वास बना हुआ है तो दुनिया का शातिर से शातिर चोर भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता और यदि चोर आपके मन में ही बैठा हुआ है तो फिर आपको आपके डर से भगवान भी नहीं बचा सकता...<br />
<br />
थोड़े कहे को बहुत समझना...<br />
<br />
जै राम जी की...<br />
<br />
आपकी<br />
संडे सुनीता<br />
<br />
😄</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-90483323271224124812018-06-23T00:35:00.002-07:002018-09-12T04:30:26.166-07:00चिट्ठी में चिट्ठी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चिट्ठी में चिट्ठी<br />
____________<br />
<br />
प्रिय दोस्तों<br />
<br />
कई बार सोचा कि आप सबको बताऊँ पर पता नहीं क्यों हर बार लिख कर ओनली मी में डाल दिया पोस्ट को..<br />
<br />
पाँच दिन पहले वॉट्स एप्प ग्रुप पर अविनाश दास जी द्वारा शेयर की गयी अभिनेता इरफान खान की अस्पताल से लिखी चिट्ठी पढ़ी तो लगा कि उन्हें एक जवाबी चिट्ठी लिखूँ.. सो लिख कर अविनाश जी के मार्फत इरफान खान और उनकी धर्मपत्नी सुतपा जी तक पहुँचा दी..<br />
<br />
आज आप सबको भी वह चिट्ठी पढ़वाने का मन कर रहा है.. शायद कहीं किसी और को भी मेरी चिट्ठी से हौसला मिले इसलिए शेयर कर रही हूँ...<br />
<br />
****************<br />
<br />
प्रिय इरफ़ान जी और सुतपा जी<br />
<br />
जयपुर से सुनीता का नमस्कार<br />
<br />
आज अविनाश जी द्वारा शेयर की गई इरफ़ान जी की चिट्ठी पढ़ी सो यह जवाबी चिट्ठी लिखे बिना अपने आप को नहीं रोक पाई..<br />
<br />
दर्द को सहना तो इरफ़ान जी ने सीख ही लिया है और मुझे यकीन है कि उसे जीतना भी सीख लिया है... हम सबकी दुआयें आपके साथ हैं..<br />
<br />
यह चिट्ठी लिखने का मेरा मकसद यह है कि आपको यह कहूँ कि आप अकेले नहीं हैं...<br />
<br />
आपको बताऊँ कि पिछले साल लगभग इसी समय मेरे पति को भी लिम्फ़ोमा मतलब लिम्फ़ नोड का कैंसर डिटेक्ट हुआ था... जब टेस्ट आदि के बाद डॉक्टर ने हमारे सामने पहली बार यह बात रखी तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी...<br />
<br />
फिर क्या था... लग कर इलाज करवाना था..<br />
<br />
एक बात और बताऊँ कि जब किसी को कैंसर जैसी बीमारी होती है न तो सिर्फ वह व्यक्ति ही बीमार नहीं होता बल्कि उसके साथ जुड़े उसके परिजन भी बीमार असहाय महसूस करते हैं...और ठीक इसी स्थिति में या तो वे हिम्मत हार जाते हैं या फिर कोई शक्ति होती है जो उनमें दुगुनी हिम्मत का संचार कर देती है..<br />
<br />
जब हम इलाज के लिए मुंबई के टाटा मेमोरियल में गये तब यह जाना कि हम तो कतई अकेले नहीं हैं.. वो गाना याद आया कि औरों का ग़म देखा तो मैं अपना ग़म भूल गया... 🙂<br />
<br />
बैठना तो दूर पैर रखने तक की जगह नहीं .. देश विदेश से इतने लोग इलाज के लिए आते हैं वहाँ... कमोबेश हर अस्पताल में यही स्थिति पाई..<br />
<br />
अब दूसरी बात यह कि इलाज वाला पार्ट तो डॉक्टर देख ही रहे होते हैं... हमें अपना पार्ट अच्छे से निभाना है.. इसमें घरवालों का भी अहम रोल होता है... सो डॉक्टरों पर पूरा भरोसा रखें और मुझे लगता है कि इस भरोसे के साथ ख़ुद पर भी पूरा भरोसा रखें कि यदि यह जंग है तो मैं इसे जीत ही लूंगा..<br />
<br />
मुझे any how ठीक होना ही है..<br />
<br />
दवाओं के असर के कारण चिढ़चिढ़ापन भी आ सकता है उसे भी आपको एंजॉय करना है...<br />
<br />
हालांकि आप खुद समझदार हैं लेकिन फिर भी बता रही हूँ कि यह समय आप पढ़ लिख कर, खूब हँसाने वाले कार्यक्रम देख कर, खूब बढ़िया सूदींग म्यूज़िक सुन कर व्यतीत करें..<br />
<br />
और सबसे महत्वपूर्ण बात सुतपा जी और बाकी घरवालों से जो कहनी है मुझे वह ये कि वे इरफ़ान जी से बिल्कुल उसी तरह व्यवहार करें जिस तरह वे यह बीमारी डिटेक्ट होने के पहले किया करते थे...<br />
<br />
(मैनें तो अपने पति से पूरे इलाज के दौरान लड़ना झगड़ना जारी रखा था.. 😊..)<br />
<br />
कहने का मतलब यह है कि बिल्कुल सामान्य तरीके से जियें.. उसी हँसी मज़ाक उसी लड़ाई झगड़े और उसी टाँग खिंचाई के साथ...<br />
<br />
यह इस बीमारी में सबसे ज़रूरी इलाज लगा मुझे और आज मेरे पति भी ठीक होने के बाद इस बात की महत्वपूर्णता सबसे ऊपर रखते हैं... 😊<br />
<br />
लिखने को तो बहुत कुछ है अभी भी लेकिन चिट्ठी बहुत लंबी हो गई है इसलिए अब समाप्त करती हूँ...<br />
<br />
खुद पर और ईश्वर पर पूरा भरोसा रख कर इलाज करवाइये... आप शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ होंगे यह मेरा विश्वास है..<br />
<br />
सादर<br />
सुनीता<br />
<br />
************<br />
<br />
याद है मैंने पिछले साल इसी समय आप सबसे शुभकामनाएँ प्रेषित करने को कहा था... और आज यह बड़ों के आशीर्वाद और आप सबकी शुभकामनाओं का ही असर है कि हमाए पांडे जी इस बीमारी को जीत गए हैं... :)<br />
<br />
इसलिए आपकी शुभकामनाओं में कभी कमी नहीं आनी चाहिए...<br />
<br />
आप सभी को खूब स्नेह<br />
<br />
आपकी<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-28538644332394698192018-05-19T18:57:00.000-07:002018-05-19T19:01:26.067-07:00बिटिया की शादी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरे पास कई पापा लोगों के फ़ोन आते हैं उनकी बिटियाओं की काउंसलिंग के लिए... अक्सर पापा लोग फोन पर ही कहते हैं कि मैम बिटिया शादी करने के लिए राज़ी नहीं हो रही है.. एक बहुत बढ़िया रिश्ता हाथ से निकल जाएगा ..मैं उसे आपके पास काउंसलिंग के लिए लाना चाहता हूँ लेकिन यह वाली बात आप उसे मत बताइएगा कि मैंने आपसे यह सब कहा है...<br />
<br />
एक तरह से वे मुझे यह कह रहे होते हैं कि मैम आप इसका ब्रेन वॉश कर दो...<br />
<br />
मैं उन दोनों को बुलाती हूँ.. दोनों से अलग अलग बात करती हूँ..दोनों से साथ साथ बात करती हूँ ...सेशन के अंत में यदि बच्ची सभी पहलू समझ कर राज़ी हो जाती है तो वे पापा गदगद हो जाते हैं लेकिन यदि अब भी शादी के लिए मना कर रही होती है (जो कि अधिकांश केसेज़ में होता है ) तो पापा बड़े ही निराश हो कर जाते हैं कि मैम ने तो इसका ब्रेन वॉश ही नहीं किया..<br />
<br />
वे पापा उन बातों को समझ कर भी नहीं समझना चाहते जो बातें उनकी बिटिया से समझ कर मैं उन्हें समझाना चाहती हूँ जबकि वे बेटियाँ बड़ी आसानी से वह सब बातें समझ जाती हैं जो उनके पापा से समझ कर मैं उन्हें समझाती हूँ...<br />
<br />
डियर पापा लोग... आपने ही बहुत लाड़ प्यार से अपनी बिटिया को समझदार बनाया है न. इस लायक बनाया है कि अपने निर्णय वह खुद ले सके .. तो उसके जीवन के इस महत्वपूर्ण निर्णय लेने में उसकी भी तो सुनो.. उसे बोझ समझे हो क्या आप अपने ऊपर... मना तो नहीं कर रही वह शादी करने से न .. कुछ अपनी बातें बता रही है तो उन्हें भी तो समझो न प्लीज़....<br />
<br />
माना कि माता पिता अपनी बच्ची के भले के लिए ही योग्यतम वर खोजते हैं लेकिन वह बच्ची को भी तो मान्य होना चाहिए वरना हो सकता है कि उसकी अपनी पूर्व धारणाओं की वजह से कल को उसके वैवाहिक जीवन में दिक्कत आये..<br />
<br />
(यही बात लड़कों के लिए भी लागू हो सकती है लेकिन मेरे पास अभी तक कोई मम्मी पापा इस बात के लिए अपने लड़के को लेकर नहीं आये हैं कि कोई योग्य रिश्ता उनके हाथ से निकल रहा है)<br />
<br />
कोई बेटी अपनी पसंद का लड़का बता रही होती है... कोई बेटी आपकी पसंद वाले उस लड़के से बात करने के बाद उस से अपने आप को कंपेटीबल न पाकर मना कर रही होती है... कोई बेटी शादी के बाद मनपसंद जॉब न कर पाने की शर्त के कारण मना कर रही होती है तो कोई इसलिए मना कर रही होती है कि वह अभी शादी ही नहीं करना चाहती... वह अभी अपना करियर बनाना चाहती है .. या वह अपने आप को शादी के लिए मेच्योर नहीं पा रही होती है..<br />
<br />
और यह सब बातें वह बेटियाँ अपने अपने पापा को बता चुकी होती है<br />
लेकिन अक्सर पापा लोग या तो समाज की दुहाई देते हैं या किसी सरकारी नौकर/बढ़िया परिवार के हाथ से निकल जाने को लेकर दुखी होते हैं...<br />
<br />
सबसे ज़्यादा ज़रूरी क्या है? बिटिया की खुशी या बिटिया की शादी?<br />
<br />
हालांकि नहीं शादी और शादी के बीच मैं व्यक्तिगत तौर पर शादी को ही चुनती हूँ लेकिन शादी थोपने को नहीं...<br />
<br />
आपकी क्या राय है इस मुद्दे पर? क्या होना चाहिए ऐसे केसेज़ में?<br />
<br />
सुनीता </div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-9986059867524760132018-05-16T23:28:00.000-07:002018-05-16T23:28:38.501-07:00Extra marital relationship /विवाहेत्तर संबंध (संशोधित पोस्ट) <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Extra Marital Relationship/ विवाहेतर संबंध<br />
<br />
(इन्टरनेट खंगालेंगे तो इस टॉपिक पर बहुत कुछ जानकारी मिल जाएगी लेकिन चूंकि आजकल पिछले कुछ समय से मैं हर संडे को मानसिक स्वास्थ्य से संबन्धित विषयों पर लेख लिख रही हूँ.. इसी कड़ी में आज के समय में बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभरते इस वृहद् टॉपिक पर एक छोटा लेख लिखने की कोशिश की है मैंने भी आज ..)<br />
<br />
विवाहेतर संबंध न केवल एक मानसिक व सामाजिक समस्या है बल्कि मैं इसे एक बीमारी के रूप में देखती हूँ...बीमारी इसलिए कहा क्योंकि बीमारी माने डिसीज़ ( Disease) माने डिस ईज़ मतलब वह बात जो कहीं न कहीं तकलीफ़ पहुंचा रही है...और चूंकि इन विवाहेतर सम्बन्धों से भी कहीं न कहीं पूरे परिवार को तकलीफ़ ही पहुँचती है इसलिए मैंने इसे बीमारी कहा...<br />
<br />
इसे बीमारी कहने के पीछे एक कारण और है वह ये कि जैसे हर बीमारी का इलाज़ होना चाहिए वैसे ही इसका भी समुचित इलाज़ होना चाहिए तब ही रोगी ठीक हो पाएंगे...इस बीमारी में पति पत्नी दोनों ही रोगी होते हैं क्योंकि दोनों ही को यह समान रूप से प्रभावित करती है ...और यदि समय रहते सही समाधान न हो तो यह पूरे परिवार को तबाह कर सकती है...<br />
<br />
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह लेख उन समानांतर सम्बन्धों के बारे में है जो विवाह में होते हुए पति या पत्नी द्वारा किसी और के साथ भी बन गए हैं...ऐसे संबंध कोई भी बना सकता है चाहे वह पति हो या पत्नी या कुछ केसेज में दोनों भी...<br />
<br />
कई केसेज में तो आपसी सहमति से भी ऐसे संबंध बनते हुए पाये गए हैं...वहाँ कोई समस्या खड़ी नहीं होती है...समस्या वहीं होती है जब इन सम्बन्धों को आपसी स्वीकृति नहीं मिली हो....<br />
<br />
बहुधा ये संबंध गुप्त ही रखे जाते हैं इसलिए ऐसे संबंध के उजागर होने पर उन दोनों पति पत्नी के बीच जो तनाव या बिखराव या लड़ाई झगड़ा आदि होता है वह तो इस बीमारी के लक्षण मात्र होते हैं...<br />
<br />
ऐसे विवाहेतर संबंध कोई नई बात नहीं है... पहले भी होते आए हैं लेकिन आज कल सोशल मीडिया की सुलभता ने इन्हें और आसान बना दिया है... और यह सिर्फ अरैंज मैरिज ही नहीं बल्कि लव मैरिज के उपरांत भी घटित हो सकते हैं...<br />
<br />
यदि उपचार करना है या इस बीमारी से बचाव करना है तो इसकी जड़ में जाना होगा तब ही यह समूल नष्ट हो पाएगी....<br />
<br />
जड़ में जाने के लिए कारणों को जानना होगा... और कारण बहुत से हो सकते हैं इसलिए मैं इन विवाहेतर सम्बन्धों को विवाहोपरांत तीन काल खंड में विभाजित कर रही हूँ क्यूंकी तीनों में ही इसके होने के कारणों में कुछ कुछ भिन्नता होती जाती है ....<br />
<br />
पहला काल खंड है विवाह के शुरू होने के तुरंत बाद से लेकर दो तीन सालों में किसी के भी द्वारा शुरू हुए विवाहेतर संबंध ...ऐसे केसेज में मुख्य कारण हो सकता है विवाह पूर्व का प्रेम संबंध जो कि खतम नहीं किया गया हो... पति पत्नी में हर छोटी मोटी बात पर लड़ाई झगड़ा या शारीरिक सम्बन्धों की असंतुष्टि ... एक दूसरे में शारीरिक या मानसिक या आर्थिक कमी देखना... परिवार से जुड़े कारण जैसे दहेज या दुर्व्यवहार या मानसिक अथवा शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना आदि....इसमें एक और मुख्य कारण पति पत्नी दोनों में से किसी एक में अत्यधिक असुरक्षा की भावना या ओवर पज़ेसिव होना भी हो सकता है जो कि एन्ग्जायटी डिसऑर्डर की तरफ इशारा करता है...<br />
<br />
दूसरा काल खंड है शादी के बाद तीन चार साल से लेकर बारह पंद्रह साल तक के समय में शुरू हुए विवाहेतर संबंध ....इसमें मुख्य कारण पति पत्नी की मानसिक वेव लेंथ मैच नहीं होना, शारीरिक सम्बन्धों में असंतुष्टि, एक दूसरे की भावनाओं का अनादर करना, व अन्य पारिवारिक कारण ...इस काल खंड में एक कारण बायपोलर बीमारी भी हो सकता है( यह कारण शुरुआत में भी हो सकता है लेकिन अक्सर नयी नयी शादी में इसका पता नहीं चल पाता है )<br />
<br />
तीसरा काल खंड होता है शादी के बाद के बारह पंद्रह सालों के बाद से लेकर शादी के बाद के पैंतीस चालीस साल में शुरू हुए विवाहेतर संबंध ...इसमें मुख्य कारण हो सकते हैं पुराने अनुभवों पर लड़ाई झगड़ा जो अब अस्तित्व में भी नहीं हों....एक दूसरे के प्रति उदासीनता.. पारिवारिक या नौकरी आदि व्यस्तताओं के चलते एक दूसरे की तरफ ध्यान न दे पाना... अपने अपने शौक पूरे करने के चलते दूसरे को अकेलेपन का अहसास आदि...<br />
<br />
शादी के पैंतीस चालीस साल के बाद भी यदि किसी का विवाहेतर संबंध शुरू होता हो ऐसा केस मेरे सामने अभी तक कोई नहीं आया है..इसलिए इस पर मैं नहीं लिख रही हूँ.. यदि आप में से किसी ने देखे हों तो लेख को समृद्ध करें...<br />
<br />
कारण जो भी हो इन सभी काल खंडों में एक बात जो कॉमन निकल कर आती है वह है पति पत्नी में ट्रस्ट की कमी, कम्यूनिकेशन या आपसी बातचीत का गलत तरीका,पारिवारिक कलह आदि...<br />
<br />
लेकिन मेरी नज़र में जो सबसे मुख्य कारण है वह है पति पत्नी में आपसी 'दोस्ती का अभाव' ..<br />
<br />
यही दोस्ती का अभाव किसी एक को विवाह के बाहर एक ऐसा दोस्त ढूँढने को लालायित कर देता है जो वैवाहिक संबंध की नींव को हिला कर रख देता है....<br />
<br />
पति और पत्नी एक इंडिविजुअल व्यक्ति के रूप में बहुत अच्छे पति या पत्नी हो सकते हैं, बहुत अच्छे पिता या माता हो सकते हैं , बहुत अच्छे दामाद या बहू हो सकते हैं, बहुत अच्छे बेटा या बेटी हो सकते हैं.. कहने का मतलब यह है कि वे अपने सभी 'कर्तव्यों' का निर्वहन बहुत बढ़िया तरीके से करते हैं लेकिन वे दोनों आपस में बस अच्छे दोस्त ही नहीं बन पाते...<br />
उनमें आपसी ट्रस्ट की कमी होती है...अलग अलग व्यक्तित्वों के कारण उनके आपसी रिश्ते में पारदर्शिता की कमी होती है जो हो सकता है कि दोनों की अलग अलग परवरिश के कारण रही हो...<br />
यही वजहें उनमें दोस्ती नहीं पैदा करवा पाती और यही धीरे धीरे सबसे बड़ी वजह बनती है वैवाहिक संबंध के बाहर जाकर किसी अन्य से एक ऐसा रिश्ता बनाने की जिसे समाज में उचित नहीं माना जाता है...<br />
<br />
दोस्ती का रिश्ता हरेक के जीवन में बहुत अधिक मायने रखता है.. दोस्त वह होता है जिसके सामने हरेक बात निःसंकोच और निश्चिंत हो कर रखी जा सकती हो.. जो अपना कंधा और कान देने के लिए हमेशा तैयार हो..<br />
जब अंतरंग रिश्ते में दोस्ती की पर्याप्त डोज़ नहीं मिल पाती तब उसकी कमी रिश्ते से बाहर दोस्त ढूंढ कर पूरी की जाती है.. और फिर कई बार बाहर से ओवर डोज़ होने के कारण इसके साइड इफेक्ट्स शादीशुदा जिंदगी पर पड़ने लाज़मी हैं ही..<br />
<br />
कई संबंधों में यह लिमिट शादी के बाहर शारीरिक संबंध बनाने तक भी पहुंच जाती है लेकिन ज़रूरी नहीं कि हरेक विवाहेतर संबंध में शारीरिक संबंध भी शामिल हों...हो सकता है कि वे संबंध केवल बातों तक ही सीमित हों लेकिन क्योंकि उन्हें सबसे छुपाया जाता है और इसीलिए कभी न कभी सामने आने पर यह संबंध कष्ट का कारण बनता है...<br />
<br />
सो सबसे बेहतर तो यही हो कि शादी के बाद पति व पत्नी सबसे पहले तो सिर्फ पति पत्नी न बनकर एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त बनें और यह संभव है सही तरीके से प्रेमपूर्ण संवाद कर के...एक दूसरे की भावनाओं का खयाल रख कर व सबसे बड़ी बात 'एक दूसरे को बाकी सब रिश्तों से आगे रख कर' ...<br />
<br />
वरना पूरे परिवार की ऐसी तैसी हो सकती है..<br />
<br />
हो सकता है कि यह लेख पढ़ कर आपकी आंखों के सामने कुछ चेहरे घूम रहे हों.. हो सकता है कि आप तिर्यक मुस्कान से किसी को देख रहे हों.. हो सकता है आप खुद घबरा गए हों...<br />
<br />
लेकिन मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य यह है कि कष्ट का कारण जानकर निवारण की तरफ़ बढ़ा जाय... कोई भी व्यक्ति परफ़ेक्ट नहीं होता इसलिए बनती कोशिश यही होनी चाहिए कि उधड़ी हुई सिवन को समय रहते टांका लगा लिया जाय...<br />
<br />
आप सभी के सुझावों का स्वागत है...<br />
<br />
सुनीता<br />
<br />
(कल यह पोस्ट शायद पढ़ी नहीं गयी मातृ दिवस की पोस्ट्स के चलते.. या फिर यह मेरे पेज पर से शेयर हुई थी इसलिए नहीं पढ़ी गयी या शायद पढ़कर भी लाइक कमेंट करने में कंजूसी हुई या फिर लाइक करने से लिस्ट में नाम आ जाने की वजह से पढ़ कर भी लाइक नहीं किया गया या फिर वाकई में इस पोस्ट को नहीं पढ़ा गया...<br />
<br />
यह एक ज़रूरी पोस्ट है और मैं चाहती हूँ कि आप सब इसे पढ़कर मुझे अपने लाइक कमेंट के ज़रिए या इनबॉक्स में ही सही बताएं ज़रूर कि इसमें और क्या लिखा जाना चाहिए था..<br />
<br />
इसे मेरी रिक्वेस्ट समझें कि जब आप मेरी चुटकुलों वाली पोस्ट्स पर अपना लाइक कमेंट देते हैं तो प्लीज़ इस पर तो ज़रूर दें... आप सभी का एडवांस में खूब शुक्रिया....)</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-31750543524520967092018-05-12T11:44:00.000-07:002018-05-12T11:44:21.110-07:00Extra marital relationship/ विवाहेतर संबंध <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
Extra marital relationship/<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">विवाहेतर
संबंध </span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">इन्टरनेट खंगालेंगे तो इस
टॉपिक पर बहुत कुछ जानकारी मिल जाएगी लेकिन चूंकि आजकल पिछले कुछ समय से मैं हर
संडे को मानसिक स्वस्थ्य से संबन्धित विषयों पर लेख लिख रही हूँ और अभी कुछ दिन
पहले मेघा मैत्रेयी ने शादी के बाद एक्स के साथ दोस्ती को लेकर एक लेख लिखा था तब
से ही यह विचार आया था और मैंने मेघा से रिक्वेस्ट भी की थी कि वह विवाह के बाद शुरू
होने वाले विवाहेतर सम्बन्धों के बारे में भी कुछ लिखे चूंकि वह बहुत अच्छा लिखती
है....लेकिन दो तीन दिन से यह विषय मेरे जेहन में कुलबुला रहा था तो सोचा कि इस पर
कुछ लिखने कि कोशिश मैं भी कर ही लूँ...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">यह न केवल एक मानसिक व सामाजिक
समस्या है बल्कि मैं इसे एक बीमारी के रूप में देखती हूँ...बीमारी इसलिए कहा
क्योंकि बीमारी माने डिसीज़ ( </span><span style="font-family: "Mangal","serif";">Disease)</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> माने डिस ईज़ मतलब वह बात जो कहीं न कहीं तकलीफ़ पहुंचा रही
है...और चूंकि इन विवाहेतर सम्बन्धों से भी कहीं न कहीं पूरे परिवार को तकलीफ़ ही पहुँचती है
इसलिए मैंने इसे बीमारी कहा...इसे बीमारी कहने के पीछे एक कारण और है वह ये कि जैसे
हर बीमारी का इलाज़ होना चाहिए वैसे ही इसका भी समुचित इलाज़ होना चाहिए तब ही रोगी
ठीक हो पाएंगे...इस बीमारी में पति पत्नी दोनों ही रोगी होते हैं क्योंकि दोनों ही
को यह समान रूप से प्रभावित करती है ....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">जैसा कि नाम से ही पता चल
रहा है कि यह लेख उन सम्बन्धों के बारे में है जो विवाह में होते हुए किसी और के
साथ भी बन गए हैं...ऐसे संबंध कोई भी बना सकता है चाहे वह पति हो या पत्नी या कुछ
केसेज में दोनों भी...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">कई केसेज में तो आपसी
सहमति से भी ऐसे संबंध बनते हुए पाये गए हैं...वहाँ कोई समस्या खड़ी नहीं होती
है...समस्या वहीं होती है जब इन सम्बन्धों को आपसी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>स्वीकृति नहीं मिली हो....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">बहुधा ये संबंध गुप्त रखे
जाते हैं इसलिए ऐसे संबंध के उजागर होने <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पर उन दोनों पति पत्नी के बीच जो तनाव या बिखराव
या लड़ाई झगड़ा आदि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>होता है वह तो इस बीमारी
के लक्षण मात्र होते हैं...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">यदि उपचार करना है या इस
बीमारी से बचाव करना है तो इसकी जड़ में जाना होगा तब ही यह समूल नष्ट हो पाएगी....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">जड़ में जाने के लिए मैं इन
विवाहेतर सम्बन्धों को तीन काल खंड में विभाजित करती हूँ क्यूंकी तीनों में ही इसके
होने के कारणों में कुछ कुछ भिन्नता होती है ....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">पहला काल खंड है विवाह के
शुरू होने के तुरंत बाद<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से लेकर दो तीन
सालों में किसी के भी द्वारा बने विवाहेतर संबंध ...ऐसे केसेज में मुख्य कारण हो सकता है
विवाह पूर्व का प्रेम संबंध जो कि खतम नहीं किया गया हो... पति पत्नी में हर छोटी
मोटी बात पर लड़ाई झगड़ा या शारीरिक सम्बन्धों की असंतुष्टि हो सकता है... एक दूसरे
में शारीरिक या मानसिक कमी देखना हो सकता है ...<span style="mso-spacerun: yes;"> परिवार से जुड़े कारणों में दहेज या दुर्व्यवहार या मानसिक अथवा शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना आदि....</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">दूसरा काल खंड है शादी के
बाद तीन चार साल से लेकर बारह पंद्रह साल तक का....इसमें मुख्य कारण पति पत्नी की मानसिक वेव लेंथ मैच नहीं होना</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शारीरिक
सम्बन्धों में असंतुष्टि</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> एक दूसरे की भावनाओं का अनादर करना</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">
व<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पारिवारिक कारण ...इस काल खंड में एक कारण
बायपोलर बीमारी भी हो सकता है( यह कारण शुरुआत मेँ भी हो सकता है लेकिन अक्सर नयी नयी शादी मेँ इसका पता नहीं चल पाता है )</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><span style="mso-spacerun: yes;"></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">दूसरा काल खंड होता है
शादी के बाद के बारह पंद्रह सालों के बाद से लेकर शादी के बाद के पैंतीस चालीस साल...इसमें
मुख्य कारण हो सकते हैं पुराने अनुभवों पर लड़ाई झगड़ा जो अब अस्तित्व में भी नहीं हों....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">एक
दूसरे के प्रति उदासीनता</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> पारिवारिक या नौकरी आदि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>व्यस्तताओं के चलते एक दूसरे की तरफ ध्यान न दे
पाना</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> अपने अपने शौक के चलते दूसरे को अकेलेपन का अहसास आदि... </span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">शादी के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पैंतीस चालीस साल के बाद भी यदि किसी का<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विवाहेतर संबंध<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुरू होता हो ऐसा केस मेरे सामने अभी तक कोई
नहीं आया है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">कारण जो भी हो इन सभी काल
खंडों में एक बात जो कॉमन निकल कर आती है वह है पति पत्नी में ट्रस्ट की कमी</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">
कम्यूनिकेशन का गलत तरीका </span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">पारिवारिक कलह<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>...और जो सबसे मुख्य कारण है वह है पति पत्नी में आपसी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दोस्ती का अभाव </span><span style="font-family: "Mangal","serif";">...</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">और यही दोस्ती का
अभाव<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किसी एक को विवाह के बाहर एक ऐसा
दोस्त ढूँढने को लालायित कर देता है जो वैवाहिक संबंध की नींव को हिला कर रख देता
है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">पति और पत्नी एक
इंडिविजुअल व्यक्ति के रूप में बहुत अच्छे पति या पत्नी हो सकते हैं</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">
बहुत अच्छे पिता या माता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हो सकते हैं </span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">
बहुत अच्छे बहू या दामाद हो सकते हैं</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> बहुत अच्छे बेटा या बेटी हो सकते हैं...लेकिन वे
दोनों आपस में बस अच्छे दोस्त नहीं होते...उनमें आपसी ट्रस्ट की कमी होती है...अलग
अलग व्यक्तित्वों के कारण उनमें पारदर्शिता की कमी होती है जो हो सकता है कि दोनों
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अलग अलग परवरिश के कारण रही हो...यही वजहें उनमें दोस्ती नहीं पैदा करवा. पाती और
यही सबसे बड़ी वजह बनती है वैवाहिक संबंध के बाहर जाकर किसी अन्य से एक ऐसा रिश्ता
बनाने की जिसे समाज में उचित नहीं माना जाता है...</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">ज़रूरी नहीं कि हरेक विवाहेतर संबंध में शारीरिक संबंध भी शामिल हों...हो सकता है कि वे संबंध केवल बातों तक
ही सीमित हों लेकिन क्योंकि उन्हें सबसे छुपाया जाता है और इसीलिए कभी न कभी सामने आने पर
यह संबंध कष्ट का कारण बनता है...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">सो सबसे बेहतर तो यही हो
कि शादी के बाद पति व पत्नी सिर्फ पति पत्नी न बनकर एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त
बनें और यह संभव है सही तरीके से संवाद कर के...एक दूसरे की भावनाओं का खयाल रख कर
व एक दूसरे को बाकी सब रिश्तों से आगे रख कर....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">आप सभी के सुझावों का</span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 10pt;"> स्वागत
है ...</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">सुनीता </span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<br /></div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-35212628470634119112018-05-09T19:03:00.002-07:002019-08-04T23:01:33.515-07:00Borderline personality disorder <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बोर्डरलाइन पर्सनलिटी डिसऑर्डर<br />
<br />
यह एक ऐसी बीमारी है जो बहुत कॉमन है और इसी वजह से इसके निदान व उपचार को गंभीरता से नहीं लिया जाता है जबकि इस विकार से ग्रसित व्यक्ति व उसके नजदीकी रिश्तेदार इस विकार के चलते बहुत अधिक परेशान रहते हैं... हमारे भारत मैं वैसे ही किसी भी व्यक्ति के नाम के साथ विशेषण लगाने की आदत होती है हम सबकी कि अरे यह तो है ही गुस्सैल या यह तो है ही आलसी....हम इन बातों के पीछे की जड़ के पीछे नहीं जाते हैं कि आखिर वह ऐसा है तो क्यों है ऐसा? क्यों सभी लोग ऐसे नहीं हैं?<br />
<br />
मतलब कुछ तो गड़बड़ है न उसके साथ इसलिए उस व्यक्ति का व्यवहार सामान्य व्यवहार से अलग हो रहा है....<br />
<br />
तो इसे ही समझने के लिए आज मैं बात कर रही हूँ बार्डरलाइन पर्सनेलिटी डिसोर्डर की।<br />
<br />
मैंने मेरे निजी परिवार में भी इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को देखा है व क्लीनिक में आने वाले कई बच्चों में भी इसे पाया तो सोचा कि इस पर बात करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह मनोविकारों में सबसे कॉमन विकार है ।<br />
<br />
भारत में ही प्रतिवर्ष करीब एक करोड़ से अधिक लोगों में पाया जाता है...आमतौर पर किशोरों व युवा वयस्कों में अधिक होता है और पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह होने की संभावना अधिक होती है।<br />
<br />
कारण<br />
<br />
-उपेक्षित बचपन होना या बचपन में दूसरों द्वारा खराब व्यवहार होना<br />
-यौन या शारीरिक शोषण का इतिहास<br />
-तनाव को सहने की कम क्षमता<br />
-कम आत्म सम्मान<br />
-माँ, पिता या भाई बहन में इस विकार का होना<br />
- महिला होना<br />
<br />
लक्षण<br />
<br />
इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं .<br />
भावनात्मक अस्थिरता (emotional instability),नाकाबिलियत का एहसास (feelings of worthlessness), असुरक्षा( insecurity), आवेगशीलता (impulsivity -एकदम से बहुत अधिक गुस्सा हो जाना) व सम्बन्धों का ठीक से निभाव नहीं होना ( impaired social relationships)...<br />
<br />
यदि लक्षणों को और अधिक विस्तार दूँ तो यह भी हो सकते हैं...<br />
<br />
-बेहद संवेदनशील<br />
-तनाव के दौरान अलग थलग महसूस करना<br />
-गंभीर मिजाज ,भावनाओं पर नियंत्रण में कठिनाई<br />
-खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति<br />
-खुद की इमेज को ले कर बहुत ही अति में सजग होना (बहुत मेक अप करना, बहुत अधिक एक्सरसाइज़ करना)<br />
-अत्यधिक सोना<br />
-किसी खास रिश्तेदार से जैसे माँ/ बाप या प्रेमी/ प्रेमिका से लव-हेट रिलेशनशिप होना मतलब रिश्तों में कठिनाई होना<br />
-खुद की साफ सफाई का ध्यान नहीं रखना जैसे कई कई दिन तक नहीं नहाना या अन्तः वस्त्र नहीं बदलना<br />
-अति में अपशब्द कहना<br />
-कभी बहुत अधिक खुश हो जाना और दूसरों से भी उम्मीद करना कि वे भी उसके साथ उतने ही खुश महसूस करें जितना कि वह स्वयं कर रहा/रही है<br />
-स्कूल/कॉलेज बहुत अधिक बंक करना<br />
-इमपलसिव ( आवेगजनित) व्यवहार जैसे<br />
दुराचार , जोखिम भरा यौन व्यवहार जुआ नशीली दवाओं और शराब का दुरुपयोग<br />
खुद को नुकसान पहुंचाना या आत्म हत्या की धमकी देना<br />
सेहत के लिए खराब चीज़ें जैसे चिप्स, कोल्ड ड्रिंक आदि बहुत अधिक खाना<br />
लोलुपता या अपने घर में भी चोरी करना<br />
-बोरियत की भावना या शून्यता का एहसास<br />
-ज़िम्मेदारी से बचना , दूसरों को दोष देना<br />
-अप्रत्याशित मूड और मूड प्रबंधन में कठिनाई होना<br />
-तीव्र, अनियंत्रित व अनुचित गुस्सा करना<br />
-तनाव होने पर इन लक्षणों का बार बार उभरना<br />
<br />
निदान व उपचार<br />
<br />
डॉक्टर मरीज का इतिहास जानकर व उसका शारीरिक निरीक्षण कर इस रोग का निदान करता है .. चूंकि उपरोक्त कई लक्षण दूसरी बीमारियों जैसे डिप्रेशन या द्विध्रुवी विकार या अन्य मानसिक बीमारियों से मिलते जुलते होते हैं इसलिए किसी योग्य मनोचिकित्सक से ही निदान करवाना उचित होता है।<br />
<br />
इसका उपचार अधिकतर बार तो सीबीटी ( कोग्नेटिव बिहेवियर थेरेपी ) व डीबीटी ( डायलेक्टिकल बिहैवियर थेरेपी) द्वारा ही हो जाता है जो कुशल सायकोथेरेपिस्ट द्वारा किया जा सकता है ...अधिक गंभीर केसेस में कुछ दवाओं का प्रयोग भी करना पड़ सकता है...ज़्यादातर केसेज में फॅमिली काउन्सलिन्ग बहुत ज़रूरी होती है इंडिविजुअल काउन्सलिन्ग के साथ साथ।<br />
<br />
किसी भी मानसिक विकार या बीमारी को जल्दी से ठीक करने का भी वही मूल मंत्र है जो किसी भी अन्य शारीरिक बीमारी को ठीक करने का होता है और वो है जल्दी से जल्दी चिकित्सकीय सलाह लेना व लाइफ स्टाइल में सुधार करना।<br />
<br />
एक विडियो का लिंक और एक आर्टिकल के कुछ स्क्रीन शॉट्स भी दे रही हूँ जो आपको बोर्डरलाइन डिसोर्डर को समझने में और अधिक मदद करेंगे ।<br />
<br />
https://m.youtube.com/watch?v=KGXdxtZZisE&feature=youtu.be<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-42885503271150494352018-05-09T19:02:00.000-07:002018-05-09T19:02:55.569-07:00फटे में पैर अड़ाना <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज का मुहावरा है<br />
<br />
'फटे में पैर अड़ाना'<br />
<br />
उदाहरण :<br />
<br />
मान लीजिए कि 'किसी' की पोस्ट पर 'किसी और' ने कमेंट किया...आप 'किसी' की पोस्ट से सहमत थे लेकिन 'किसी और' के कमेंट से कुछ असहमत थे...<br />
<br />
आपको उस 'किसी और' का कमेंट पढ़कर उसका रिप्लाय देने की हाजत हो आई.. आपने शुद्ध मन से उस थ्रेड पर 'किसी और' के कमेंट के संदर्भ में बहुत ही शालीन भाषा में 'किसी' को रिप्लाय लिख दिया...<br />
<br />
वह रिप्लाय' किसी और' ने पढ़ा.. वह आपके रिप्लाय से बहुत आहत हो गया.. उसे लगा कि आपने उसे आईना दिखाया है और उसके रिप्लाय में उसने अपनी सम्पूर्ण अहमियत बताते हुए आपको रिन लगा कर अच्छे से 'धो' डाला... आप अपना सा मुँह ले कर रह गए माफ़ी मांगते हुए उस बात के लिए जो कि आपका आशय था ही नहीं..<br />
<br />
इसे कहते हैं फटे में पैर अड़ाना ...जिसके नुकसान ही नुकसान हैं...<br />
<br />
आपको यह समझ आना चाहिए कि फटे में पैर तो अड़ाओ लेकिन 'किसी और' का नाम लेकर नहीं क्योंकि 'किसी और' को यह जानकर बुरा लग सकता है कि उसका कपड़ा फटा है.. और वह सबको दिखाई दे गया है अब.. और वह आहत हो सकता है...<br />
<br />
घुटने छिल गए हैं कसम से... :( :'(<br />
<br />
अब आप लोग मलहम लगाओ.. डीटोल मत लगाना.. डीटोल से जलता है...<br />
<br />
😄 😂<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-16672746785941835142018-04-28T20:22:00.002-07:002018-04-28T20:22:57.333-07:00ओसीडी - नकारात्मक विचारों का घुमड़ना <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">नकारात्मक विचारों का घुमड़ना
</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">आज बात करूंगी ओब्सेसिव कम्पल्सिव
डिसोर्डर की ...कोई एक केस स्टडी नहीं लिखूँगी इस पर क्योंकि इस बीमारी के कारक एक दूसरे से
बहुत <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भिन्न हो सकते हैं लेकिन लक्षण काफी कुछ
समान होते हैं और कारण निश्चित होते हैं...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">जब किसी के मन में हर बात में
या हर चीज़ के लिए कुछ नकारात्मक विचार ही आए या एक ही विचार बार बार आए <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और उन विचारों से उसको खुद को ही सबसे अधिक परेशानी
हो रही हो तो यह ओसीडी की तरफ बढ़ते कदम हो सकते हैं...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">जैसे इसमें व्यक्ति या तो किसी
दूसरे को दयनीय हालत में देखे जैसे यदि उसने किसी बहुत गरीब व्यक्ति <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को देखा या अस्पताल में किन्हीं बीमार व्यक्तियों
को देखा तो उसे यह बार बार यह विचार आने लग जाता <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कि अब
ये लोग मर जाएंगे...सड़क पर किसी कुत्ते के बच्चे को देख उसे लगेगा कि अब यह गाड़ी के
नीचे आ कर मर जाएगा...किसी पार्क में किसी बच्ची को देख कर उसके मन में यह विचार बार
बार आएगा कि अब इसके साथ दुष्कर्म हो जाएगा...यदि उसके खुद के चेहरे में या शरीर पर
कोई विजिबल दाग है तो उसे हर वक्त यही लगता रहेगा कि सामने वाला उस दाग के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बारे में ही <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सोच रहा होगा...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">कहने का मतलब यह है कि इन व्यक्तियों
के मन में एक ही विचार बार बार रिपिट होता रहता है...और इतना घुमड़ता रहता है कि उसके
कारण उनका सामान्य तरह से जीना मुश्किल होता जाता है...वे एक भंवर से में फंसे हुए महसूस
करते हैं ...कई लोग तो आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">इनका एङ्ग्जायटी लेवल बहुत
बहुत बढ़ जाता है...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">एक ही तरह के विचार का या हर
बात पर नकारात्मक विचारों का बार बार आना </span><span style="font-family: "Mangal","serif";">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">ओब्सेशन</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> कहलाता है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">चूंकि ये विचार इंसान में बहुत
बेचैनी पैदा करते हैं तो वह इनसे भागना <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चाहता
है...इनसे छुटकारा पाना चाहता है तो ऐसे में कुछ लोग <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कुछ ऐसी क्रियाएँ करने लगते हैं जिनके करने से कुछ
समय के लिए उन्हें इन विचारों से रिलीफ़ मिल जाता है...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">जैसे कुछ लोग बार बार ताला
चेक करते हैं...कुछ लोग बार बार गैस <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चेक करते
हैं...कुछ बार बार जेब चेक करते हैं...कुछ लोग हर चीज़ को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से
रखते हैं...इतना व्यवस्थित कि यदि वह चीज़ थोड़ी भी आढ़ी टेढ़ी हो जाये तो भी उन्हे गुस्सा
आ जाता है...कुछ लोग गंदगी या धूल मिट्टी को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाते.... यदि किसी ने उनके
बिस्तर को टच कर लिया तो वे पूरा बिस्तर ही पनि में निकाल देते हैं बाहर जाने पर </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 10pt;">पर्टिकुलर जगह पर बार बार जाकर ही चैन पाते </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 10pt;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 10pt;">हैं...या किसी पर्टिकुलर जगह पर देखे बिना उन्हे
चैन नहीं आता...</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 10pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">कहने का मतलब यह है कि जब तक
वे किसी पर्टिकुलर क्रिया को कर नहीं लेते तब तक चैन नहीं पाते <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">ऐसा करने से कुछ देर के लिए
उन्हे आराम मिल जाता है लेकिन फिर कुछ देर बाद वही नकारात्मक या वही पर्टिकुलर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विचार उनके जेहन में फिर से आ जाते है और वे फिर
से बेचैन हो जाते हैं और फिर से वही पर्टिकुलर क्रिया करने पर मजबूर हो जाते हैं...</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">.इन
क्रियाओं <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को </span><span style="font-family: "Mangal","serif";">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">कंपलशन</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">
कहा जाता है...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">और जब ये विचार और क्रियाएँ
उस व्यक्ति को खुद को या उसके आसपास वालों को परेशान करने लग जाती है तो समझ लेना चाहिए
कि उसे ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसॉर्डर की शुरुआत हो चुकी है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">अब इसके कारणों की बात करूंगी...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">अक्सर ऐसा तब ही होता है जब
उस व्यक्ति के मन में कोई ऐसी बात दबी हो जिसे वह किसी के साथ भी शेयर नहीं कर पाया
हो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन वह बात उसे भीतर ही भीतर परेशान कर
रही हो....उसे असुरक्षा का आभास हो रहा हो ...किसी दूसरे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का भी कोई ऐसा राज़ हो जो सिर्फ उसे और उस दूसरे को
ही पता हो लेकिन भीतर ही भीतर उसे लग रहा हो कि यह गलत हो रहा है....मन में किसी भी
बात को लेकर डर हो...यदि पहले कभी सेक्सुयल मोलेस्टेशन हुआ हो ...किसी ने धमकाया हो...बचपन में माता
पिता से अलग रहना पड़ा हो....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">कई बार घर में बहुत ही अशांत
या बहुत ही शांत वातावरण <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हो मतलब दोनों ही
बातों की अति हो...याने या तो घर में हमेशा ही लड़ाई झगड़ा ही होता रहता हो या फिर घर
में कोई भी एक दूसरे से बिलकुल बात ही न करता हो तो ऐसे में भी जब शेयरिंग नहीं हो
या कोई सुनने वाला नहीं हो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो मन की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बात मन में ही दबी रह जाती हैं जो इस डिसॉर्डर को
जन्म दे सकती हैं....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">बहुत लंबे समय तक ऐसे विचारों
के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बार बार परेशान करने की वजह से दिमाग में
कुछ रसायनों का असंतुलन होने लगता है और फिर यह बीमारी का रूप लेने लगता है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">इसके इलाज के लिए उचित दवा</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">
सायकोथेरेपी और सही जीवन शैली आवश्यक है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">यदि परेशानी की शुरुआत ही <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है तो हो सकता है कि सिर्फ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सही काउन्सलिन्ग से और जीवन शैली ठीक करने से ही
आराम मिल जाए और यदि फिर भी आराम नहीं मिलता तो इन दोनों के साथ साथ उस व्यक्ति को
सायकेट्रिस्ट से मिल कर सही दवा भी लेनी चाहिए....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">सही जीवन शैली से मेरा आशय
सही खानपान</span><span style="font-family: "Mangal","serif";">,</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"> उचित व्यायाम और पर्याप्त व सही नींद से है....</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">मैंने ओसीडी को लेकर लगभग सभी महत्वपूर्ण
बातें संक्षिप्त में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस लेख में लिखने की कोशिश
की है ....फिर भी यदि आपके कोई स्पेसिफिक सवाल हों तो आप कमेन्ट बॉक्स या इनबॉक्स में
पूछ सकते हैं...</span><span style="font-family: "Mangal","serif";"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-font-size: 11.0pt;">सुनीता <o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-3083658083509657962018-04-22T19:28:00.000-07:002018-04-22T19:28:13.542-07:00केस स्टडी- भूलने की बीमारी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
केस स्टडी- भूलने की बीमारी<br />
<br />
एक भाई का फोन आया अपनी बहन के लिए कि मैडम वह छोटी छोटी बातें भी भूलने लगी है.. क्या आपके पास इस बीमारी का भी इलाज है?<br />
<br />
मैनें कहा उन्हें लेकर आइये.. उनसे बात करने के बाद ही बता पाउंगी..<br />
<br />
वे अपनी बहन और उसके पति को लेकर आये..<br />
लड़की मुस्कुरा रही थी लेकिन हूँ हाँ के अलावा कुछ और नहीं बोल रही थी ..सिर्फ यही बता रही थी कि गैस पर कुछ रख कर भूल जाती हूँ.. पानी की मोटर चला कर बंद करना भूल जाती हूँ आदि आदि..(बाद में बात करते करते पता चला कि उसे बाकी सब अन्य बातें अच्छी तरह याद थीं)<br />
<br />
यूँ लगा कि वह खुलकर बात नहीं कर पा रही थी तो मैनें उसके पति और भाई को बाहर भेजकर उससे अकेले में बात करना ज़रूरी समझा..<br />
<br />
उम्र तेईस साल... शादी को ढाई साल हो गए ...मायका बड़े शहर में है.. शादी के बाद छोटे कस्बे में रहती है क्योंकि पति और ससुराल वालों का व्यवसाय वहीं है.. शादी उसको यह सब बता कर उसकी रजामंदी से ही हुई है.. डेढ़ साल का एक बेटा भी है.. घर में सास ससुर पति और एक हमउम्र ननद है.. सभी का व्यवहार अच्छा है ...खाने पीने ओढ़ने पहनने बोलने चालने को सब अच्छा है.. बच्चे का पूरा ध्यान ननद रखती है... रात को भी अपने पास ही सुलाती है... आदि आदि..<br />
<br />
मैं मुस्कुराई और उससे आगे और समझने के लिए प्रश्न पूछे..<br />
<br />
मन की बातें शेयर करने की बात पर उसने कहा कि वह किसी से भी नहीं कर पाती.... शुरु शुरु में ननद उसके काम में मीनमेख निकालती थी और ज़ोर से बोल जाती थी.. यह डर जाती थी.. पति चूँकि दुकान से लेट आते थे ,थके हुए होते थे और यह उनसे कुछ कह नहीं पाती थी...पति का गुस्सा भी तेज़ है... उनसे भी डरती है यह.. कभी पति से कहना भी चाहती थी तो वे इससे यह कह देते कि एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दे.. यह बात बताते हुए उसका गला और आँखें भर आईं..फिर बोली कि अब मैनें इन्हें कुछ भी बताना बंद कर दिया है...<br />
<br />
घूमने जाने की बात पर उसने कहा कि साल में एकाध बार जहाँ भी जाते हैं तो रिश्तेदारों के साथ ही जाते हैं...<br />
<br />
फिर मैनें उसके पति को अंदर बुलाया... और दोनों से बात की...उसके पति को समस्या का वह पहलू दिखाया जो वह नहीं देख पा रहा था...मैनें देखा कि पहले यह घबरा रही थी लेकिन जब पति ने स्वीकार्यता दिखाई तो यह भी अब यह सहज होने लगी थी...<br />
<br />
जाते जाते अपनी आँखों के जरिए दिल से राहत भरा शुक्रिया अदा कर गई...<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-86767155119829749982018-04-11T20:43:00.000-07:002018-04-22T19:27:28.995-07:00बायपोलर डिसऑर्डर के लक्षण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बायपोलर मूड डिसोर्डर<br />
<br />
बहुत ही कन्फ़्यूजिंग बीमारी<br />
<br />
हम भारतीय बोलते बहुत हैं इसीलिए बचपन से ही हमें विशेषण सुनने की आदत पड़ जाती है...अरे यह तो आलसी है, वह तो बहुत गुस्सैल है...फलां तो नवाबजादा है जब देखो तब गाड़ियों, लड़कियों पर पैसे फूंकता रहता है...वह लड़की देखो...अपने आप को मिस इंडिया समझती है...उसका मेकअप कितना लाउड रहता है....आदि आदि<br />
<br />
विशेषण सुनते सुनते ही हम बड़े होते हैं इसलिए कब हम खुद भी विशेषण देना प्रारम्भ कर देते हैं हमे खुद पता नहीं चलता...आसान काम है यह...बोला और छुट्टी...हम इसकी वजहों के पीछे जा ही नहीं पाते कि अगला या अगली कुछ अलग है तो क्यूँ हैं?<br />
<br />
अति सर्वत्र वर्जेयत<br />
<br />
इस प्रकार के लक्षणों का अति में होना भी सामान्य नहीं है...लेकिन विशेषण सोचने का मौका नहीं देते...<br />
<br />
आज मैं बात करूंगी बाय पोलर मूड डिसॉर्डर की जिसे पहचानना इन्ही विशेषणों के चलते आम जन के लिए थोड़ा मुश्किल होता है.....इसीलिए मैंने इसे कन्फ़्यूजिंग बीमारी कहा....जो व्यक्ति इन लक्षणों वाले व्यक्तियों के साथ रह रहे होते हैं उन्हें पता है कि वे कितनी मुश्किल से उन्हे और अपने आप को संभाल रहे होते हैं...अक्सर बाय पोलर से ग्रसित व्यक्ति को खुद पता ही नहीं होता कि उसे कोई बीमारी भी है क्या?...लेकिन एक बार रियलायज़ेशन आ जाये तो वे दवाओं और काउन्सलिन्ग के साथ एक नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं...<br />
<br />
चूंकि इसके लक्षणों का स्पेक्ट्रम बड़ा है और ज़रूरी नहीं कि सभी लक्षण किसी एक में हो ही हो...या कि सभी में बिलकुल एक जैसे ही लक्षण हों....लेकिन फिर भी इन लक्षणों को कुछ केटेगरीज़ में रखा जा सकता है जो हर ग्रसित व्यक्ति में पाया जाएगा...<br />
<br />
इसीलिए आज मैं यहाँ किसी एक केस की बात न कर उन लक्षणों को आसान भाषा में समझानेकी कोशिश करूंगी ताकि आप भी इसे आसानी से समझ सकें व अपनी या दूसरों की मदद कर सकें...<br />
<br />
( मैं इस बीमारी की वैज्ञानिक व्याख्या व इलाज की बात न कर डिटेल में सिर्फ लक्षणों की बात करूंगी...इलाज डॉक्टर के ऊपर छोडते हैं ...)<br />
<br />
जैसा कि नाम कह रहा है बाय पोलर मूड डिसोर्डर<br />
<br />
बाय मने दो पोलर मने ध्रुव, ( मेनिया और डिप्रेशन)...मूड का मतलब आप जानते ही हैं और डिसोर्डर मने गड़बड़ी होना....मतलब जब व्यक्ति के मूड में दोनों ध्रुवों के समान गड़बड़ हो जाये...मतलब एक ही व्यक्ति का मूड उत्तर और दक्षिण दोनों ध्रुव पर पहुँच जाये...जिसे कहावत के रूप में कहते हैं पल में तोला पल में माशा...पलक झपकते ही उस व्यक्ति का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच सकता है और अगले ही पल वह ऐसे शांत हो सकता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं....<br />
<br />
अब नाम की इस व्याख्या के साथ आपको समझने में आसानी हो रही होगी....तो यदि किसी ऐसे व्यक्ति को आप जानते हैं तो उसमें अब और लक्षणों की पड़ताल कर सकते हैं...<br />
<br />
बाय पोलर से ग्रसित अधिकतर लोग कभी तो बहुत खुश रहेंगे..और कभी बहुत उदास ....यह ‘कभी’ कुछ घंटे से लेकर कुछ दिन या कुछ महीने तक भी हो सकता है...( खुश ,उदास,गुस्सा,मस्ती आदि को ही हम मूड कहते हैं...है न?...)<br />
<br />
जब वे मेनिया मूड में होते हैं तब...इस फेज में व्यक्ति बेहद एनर्जी ,रचनात्मकता और चरम तक खुशी महसूस करता है...<br />
व्यक्ति खूब बोलता है...बहुत हायपर एक्टिव होता है और बहुत कम सोने पर भी थका हुआ महसूस नहीं करता...अपने आप को बहुत महान समझता है...<br />
<br />
ऐसे व्यक्ति खूब मने खूब मस्ती , हंसी मज़ाक करते हैं लेकिन आप यह देख सकते हैं कि वे अक्सर लोगों के सामने कुछ ऐसी हरकत भी कर जाते हैं जो सामान्य तौर पर सामान्य व्यक्ति द्वारा नहीं की जाती...<br />
<br />
उन्हे अपने बारे में ऐसा लगता है कि वे बहुत खूबसूरत हैं या बहुत स्मार्ट हैं या जैसे वे कहीं के राजा महाराजा हैं...या उनके पास कोई सुपर पावर है...और अक्सर वे खुद ऐसी बातें अपने मुंह से ही कहते हैं...( कोई भी सामान्य व्यक्ति अपनी ही तारीफ अपने ही मुंह से नहीं करता है जब तक कि वह सेल्फ एपरेजल फ़ार्म न भर रहा हो)<br />
<br />
शुरुआत में मेनिया अच्छा लगता है लेकिन फिर यह आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है....परेशानी तभी आरंभ होती है....ऐसा होने पर व्यक्ति औकात से अधिक कर्ज ले कर बिना सोचे समझे समान खरीद सकता है...बचत को जुए में उड़ा सकता है..अनुचित सेक्सुयल एक्टिविटी में पड़ सकता है..ऑनलाइन फ़्लर्टिंग या ओफलाइन फ़्लर्टिंग बहुत हद तक बढ़ जाती है...एक्स्ट्रा मेराइटल अफ़ेयर में भी जा सकते हैं वे ..यदि एक से संबंध टूटा तो वे बिना गिल्ट दूसरे के साथ या कई बार बहुत से एक साथ संबंध भी चला लेते हैं...सेक्सुअली भी....यदि उनसे तकरार करो तो वे अपनी इस हरकत को जस्टिफ़ाय भी कर देते हैं.....और उन्हे इस बात का फर्क नहीं पड़ता .. वह बेवकूफ़ाना इनवेस्टमेंट भी कर सकता है...यदि उन्हें इस तरह के व्यवहार न करने की धमकी दी जाय या डराया जाय तो कुछ समय के लिए वे यह व्यवहार बंद कर देते हैं लेकिन फिर कुछ दिन बाद वही ढाक के तीन पात...उन्हें यह महसूस ही नहीं होता कि वे कुछ गलत कर रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बीमारी का रियलाइज़ेशन ही नहीं है....<br />
<br />
इसी फेज में व्यक्ति का गुस्सा बढ़ सकता है...वह हिंसक हो सकता है ...यदि दूसरे लोग उसके प्लान के मुताबिक नहीं चलें तो गाली गलौज और मारपीट तक कर सकता है...यदि कोई उसके व्यवहार की आलोचना करे तो वह व्यक्ति उन्हें ही दोषी ठहरा सकता है....इसी फेज में कुछ लोगों को कुछ आवाज़ें सुनाई देने लग जाती हैं या कुछ दिखाई देने लग जाता है जो वास्तव में सामने है ही नहीं....कुछ को रस्सी को साँप समझने का सा भ्रम भी हो जाता है....उसके विचार जंप करते रहते हैं एक से दूसरे पर....कुछ लोग इतना जल्दी बोलते हैं कि सामने वाले समझ ही नहीं पाते की वह क्या कहना चाह रहा है...कंसंट्रेशन पावर घट जाती है...बहुत जल्दी डिसट्रेक्ट हो जाते है...बिना परिणाम सोचे समझे लापरवाही से काम करते हैं ...<br />
<br />
कुछ व्यक्तियों में उक्त लक्षणों की डिग्री में कमी होती है...मतलब उनमें एनर्जी और खुशी तो चरम पर रहती है लेकिन वे डे टु डे के काम ठीक तरीके से निभाते जाते हैं...लोगों को लगता है की यह व्यक्ति अच्छे मूड में है...लेकिन ये कम डिग्री वाले भी बहुत गलत निर्णय लेते हैं जिसका फरक इनके केरियर, इनके सम्बन्धों इनकी रेपुटेशन आदि पर भी पड़ता है...<br />
<br />
यही सेम व्यक्ति मूड बदलने पर डिप्रेशन में भी जाते हैं ...तब वे उदासी, खालीपन महसूस करते हैं....खुशी एंजॉय नहीं कर पाते...थके हुए रहने लगते हैं...अपने आपको सँवारने सजाने में कोई आनंद नहीं लेते जबकि एक समय पर वे इस एक्टिविटी को पूरे जोश के साथ करते थे…भूख और नींद बिगड़ जाती है...वजन बदलने लगता है....याददाश्त पर फर्क पड़ जाता है...अपने आप पर इन्हें शर्म आती है...अपने आप को वर्थलेस समझने लग जाते है...कुछ लोग तो आत्महत्या करने की भी सोचने लगते हैं....<br />
<br />
यदि आप खुद में या किसी व्यक्ति में उपरोक्त में से अधिकांश लक्षण देखें तो बिना समय गवाएं मनोचिकित्सक से मिलें...क्योंकि समय के साथ इन लक्षणों में वृद्धि होगी...कई बार परिवारजन यह कहते हैं कि वह व्यक्ति तो मानने को तैयार ही नहीं है कि उसे कोई बीमारी है भी.....इसीलिए वह डॉक्टर के पास जाने को तैयार नहीं है.ऐसे में बहुत मुश्किल हो जाती है...ऐसे में उस व्यक्ति से संबन्धित कोई भी व्यक्ति एक बार अकेले जाकर भी डॉक्टर से मिल सकता है ... वह मनोचिकित्सक को समस्या से अवगत कराये...फिर जैसी वे सलाह दें वह करें...<br />
<br />
यह वाकई एक दुखदाई बीमारी है....लेकिन निराश न हों क्योंकि समाधान भी हैं...<br />
<br />
यदि आपके कोई स्पेसिफिक प्रश्न हों तो मुझसे इनबॉक्स में पूछ सकते हैं....क्योंकि इस बीमारी के लक्षणों की सूची बहुत लंबी है सो सभी का यहाँ उल्लेख कर पाना मुश्किल है...हालांकि बनती कोशिश मेरी यही रही है कि अधिकतर ज़रूरी लक्षणों का उल्लेख कर सकूँ....<br />
<br />
सुनीता<br />
<br />
<br />
<br />
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Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-82656234238818103422018-04-09T19:29:00.002-07:002018-04-11T20:42:04.104-07:00गीता सार और खट्टर काका <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गीता सार और खट्टर काका<br />
-----------------------------------<br />
<br />
पहले सोचा था कि कुछ दिन बाद अपना अनुभव लिखूँगी गीता सार पर लेकिन कल खट्टर काका ने मजबूर कर दिया और मैं आज यह लिखने से रुक नहीं पायी....:)<br />
<br />
मैं रोज़ वॉक के समय रेडियो सुनती हूँ लेकिन अभी कुछ दिन पहले....बोले तो 5 अप्रेल 2017 को प्रेसाइज़ली मुझे गाने सुनने का मन नहीं हुआ...लेकिन वॉक करनी भी ज़रूरी थी और कानों में किसी का साथ हुए बिना वॉक हो नहीं पाती और इधर कुछ समय से फिर से साहित्य का भूत सर चढ़ा है सो सोचा कि कितना अच्छा हो कि मुझे हिन्दी की छोटी छोटी कहानियाँ सुनने को मिल जाएँ....यही सोच कर प्ले स्टोर पर औडियो बुक्स सर्च की...तो वहाँ सामने आ गए गीता सार, कुरान और बाइबल इत्यादि भी....<br />
अब बहुत समय से गीता पढ़ना चाह रही थी मैं....पहले तो उमर के चलते नहीं पढ़ी, फिर घर गिरस्ती के चलते नहीं पढ़ पायी और अब जब ‘वैसी’ उमर हो गयी है तो चश्मे के मारे नहीं पढ़ पा रही थी...काहे कि लंबे समय तक नाक पर बैठे वह खुजली करने लग जाता है...तो अब इस सुनहरी मौके को लपक लिया मैंने और मोबाइल में गीता सार इंस्टाल कर लिया कि एक पंथ दो काज हो जाएँगे...<br />
<br />
अभी परसों तक मैंने 12 अध्याय पूरे कर लिए हैं....<br />
<br />
अब बीच में ही बात “खट्टर काका” की ...फिर गीता सार पर बाद में बात करूंगी...<br />
<br />
तो अभी कुछ दिन पहले शरलकहोम्सगिरी करते हुए “खट्टर काका” के बारे में जानना हुआ फेसबुक पर...किसी ने इसका ऐसा वर्णन कर रखा था की मैंने तुरंत अमेज़न से ऑर्डर कर दी यह किताब...<br />
<br />
कल देर शाम यह मेरे हाथ में आई तो मैंने इसके कुछ पन्ने यूं ही पलटे...और चंद पंक्तियाँ पढ़ते ही तुरंत घर के काम निपटाने में लगी....जब निवृत्त होकर इसे पढ़ने बैठी तो समर्पण और लेखकीय वक्तव्य से ही जो हँसी के फव्वारे छूटने लगी कि बस पूछिए ही मत....उसके बाद पहला अध्याय आया ‘रामायण’ का....और प्रो. हरीमोहन झा के खट्टर काका द्वारा रामायण की व्याख्या पढ़ कर हंस हंस कर पेट में बल पढ़ गए....उसके बाद दूसरा अध्याय ‘गीता’ शुरू हुआ....उसमें खट्टर काका ने जो व्याख्या की गीता की कि मैं मय आवाज़ ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी...बच्चे भी एक बार को तो घबरा गए कि आज इस वक्त मम्मी को यह कैसा दौरा पड़ा है...<br />
<br />
खट्टर काका ने इसमें अधिकतर श्लोक गीता के अध्याय 2 से ही उद्धृत किए हैं...और मैंने चूंकि ये ताज़ा ताज़ा ही सुने थे एप्प पर तो मैं पूरी तरह से उन्हे रिलेट कर पा रही थी....बल्कि 7 तारीख को मेरी एक मित्र से गीता सार पर चर्चा भी हुई थी और हम बिलकुल ऐसी ही व्याख्या करते हुए खूब हँसे भी थे जैसी व्याख्या प्रो. हरिमोहन झा ने खट्टर काका में की है....<br />
<br />
वाकई भला हो उन महान व्याख्याकारों का जिन्होने गीता की इतनी सुंदर सुंदर व्याख्याएँ कर दीं वरना मुझ जैसे आम इंसान तो बिलकुल खट्टर काका जैसी ही व्याख्या कर पाते गीता की....:)<br />
<br />
तो साहब, मुझे तो फेसबुक के मेरे साहित्यकार मित्रों से शिकायत हो रही है अब कि जिन लोगों ने भी इसको पहले पढ़ रखा था उन्होने इतनी महत्वपूर्ण किताब का यहाँ बारंबार उल्लेख क्यूँ नहीं किया मुझ जैसे लोगों के लिए?...आज के समय की बहुत ज़रूरी किताब है यह....मैं तो इसे हाइली रिकम्ण्ड करती हूँ....<br />
<br />
और एक बात यह जो मैं यहाँ “खट्टर काका की व्याख्या” लिख रही हूँ इसे अभिधा में नहीं पढ़ें बल्कि इस किताब में खट्टर काका इन महा ग्रन्थों की कमियों को बहुत ही बढ़िया तरीके से उधेड़ रहे हैं...<br />
<br />
यदि आप इन महाग्रंथों के बारे में कुछ जानते हैं या इन्हें पढे हुए हैं तो वाकई खट्टर काका की व्याख्या पढ़ते पढ़ते बिलकुल यही सवाल जवाब मन में आते हैं जैसे इस किताब में उठाए गए हैं....<br />
<br />
रात मैं सिर्फ गीता तक ही पढ़ पायी क्यूंकी बिटिया ने आकर डांट लगा दी कि मम्मी अब तो सो जाओ...साढ़े बारह बज रहे हैं रात के...<br />
<br />
उस से मैं सिर्फ इतना ही कह सकी कि बेटा अभी तक तो सो ही रही थी...जागना तो अब सीख रही हूँ...परसाई अंकल से, खट्टर काका से...<br />
<br />
बिटिया ने मुझे अजीब सा लुक दिया और आसमान की तरफ हाथ उठा कर मेरे लिए दुआ करती हुई चली गयी....:)<br />
<br />
ये तो हुई गीता सार की बात ....अब चलूँ...घर के काम जल्दी से निपटाऊँ क्योंकि आज तो खट्टर काका के साथ महाभारत में उतरना है....<br />
<br />
यह लिखते लिखते एक सवाल मन में आया अभी कि क्या अन्य धर्मों में भी कोई खट्टर काका हुए होंगे?<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-38086492200991980732018-04-09T08:23:00.002-07:002018-04-09T19:29:09.998-07:00डिप्रेशन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
प्र. मेरे घरवाले बहुत दकियानूसी और रूढ़ीवादी हैं. मुझे समझते ही नहीं. मेरे विचारों को भी नहीं. वे यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि मैं परेशान हूँ. उदास हूँ. अवसादग्रस्त हूँ. वे कहते हैं कि तू आलसी है. काम से बचने का बहाना कर रहा/रही है. मेरे मन में आत्महत्या के विचार आते हैं. क्या करूँ?<br />
<br />
उ. सबसे पहली बात तो तुम अकेले नहीं हो इस सिचुएशन में. बहुत से लोग हैं और अपनी परिस्थितियों से फाइट कर रहे हैं. जैसा कि मैं हमेशा कहती हूँ, तुमसे भी कह रही हूँ कि आत्महत्या समस्या का अंत नहीं है बल्कि तुम्हारे निकटजनों के लिए नई समस्याओं की शुरुआत है.<br />
<br />
अब बात तुम्हारे परिजनों की, तो यह जान लो कि आज भी अधिकांश परिवार तुम्हारे परिवार की तरह ही रूढ़ीवादी हैं...तुम दुखी इसलिए हो क्योंकि तुम्हारी तुम्हारे परिजनों से अपेक्षाएं उनकी सोच की कैपेसिटी से बहुत अधिक हैं ..जबकि तुम्हारा अपने परिजनों की सोच पर कंट्रोल ही नहीं है ...यही अपेक्षा तुम्हें परेशान किये हुए हैं .<br />
<br />
प्र. तो मुझे करना क्या है अब? मैं इस सब परेशानी से बाहर आना चाहता/चाहती हूँ जल्दी से.<br />
<br />
उ. तुम्हें सबसे पहले तो अपनी सेहत की तरफ ध्यान देना है. अपना रुटीन व्यवस्थित करना है. अपने सोने जागने का समय नियत करना है. यदि नींद नहीं आ रही हो तो डॉक्टर को दिखा कर कुछ दिन दवा लेने में भी हर्ज नहीं है.<br />
<br />
सो कर उठने के दो से तीन घंटे के भीतर भरपेट नाश्ता करना है. खूब पानी पीना है. भरपूर फल और सलाद खाना है और दिन में कम से कम एक घंटा फिजिकल एक्सरसाइज़ कर अपने शरीर को थकाना है.<br />
<br />
स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का वास होता है.<br />
<br />
तुम्हें बार बार अपने आप से यही कहना है कि मेरा कंट्रोल सिर्फ और सिर्फ मुझ पर है दूसरों के व्यवहार पर नहीं.<br />
<br />
यह ऑटोसजेशन तुम्हारी अपेक्षाओं को कम करने में सहायता करेगा. तुम्हारा मन शांत होगा इससे.<br />
<br />
हो सके तो घर के बाहर लोगों से मिलो. अपने आप को अकेला मत रखो. कोई टीम स्पोर्ट या एक्टिविटी जॉइन करो. गाने सुनो, नाचो, गाओ और चाहो तो एक लिमिट तक रो भी सकते हो फॉर टाइम बीइंग... :)<br />
<br />
यह सब रीलीजियसली करो पंद्रह बीस दिन... फिर भी स्थिति में सुधार नहीं हो तो किसी काउंसलर से पर्सनली मिलो...<br />
<br />
और मुझे फीडबैक देना मत भूलना... :)<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-62958184640380545152018-04-08T20:54:00.000-07:002018-04-08T20:54:07.673-07:00केस स्टडी - पत्नी का अफेयर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
केस स्टडी- पत्नी का अफेयर<br />
<br />
वह लगभग सैंतीस अड़तीस वर्ष का देखने में गहरे रंग का अति साधारण पुरुष था.. अपनी सहमी सकुचाई सी लगभग छब्बीस सताईस वर्षीया गौरवर्णी खूबसूरत पत्नी को मेरे पास लाया था..<br />
<br />
अपनी पत्नी की तरफ इशारा करते हुए बोला कि मैडम मैं तो मेहनत मजूरी करने बाहर जाता हूँ लेकिन यह पास पड़ोस के आदमियों के साथ संबंध बनाती है... मैं क्या इसकी इच्छा पूरी नहीं करता? आप ही समझाओ इसे और कुछ दवा दे दो ताकी इसकी सेक्स की इच्छा कम हो जाये और यह दूसरे आदमियों से संबंध बनाना बंद कर दे...<br />
<br />
पत्नी की आँखे डबडबा आईं...<br />
<br />
मुझे कुछ संदेह हुआ..<br />
मैनें पत्नी को बाहर भेजा और पुरुष से और बात की..<br />
<br />
मैनें पूछा कि क्या आपने इसे रंगे हाथों पकड़ा है कभी? वह बोला नहीं लेकिन मुझे पता है कि यह ऐसा करती है... जब मैं घर पर नहीं होता हूँ तब यह लड़कों को बुलाती है...<br />
<br />
मैनें पूछा कि आपकी शादी को कितने साल हुए हैं? वह बोला कि चार पाँच साल हुए होंगे.. मैनें पूछा कि आपके कितने बच्चे हैं और कितने बड़े हैं ? वह बोला दो बच्चे हैं ..बेटी तीन साल की है और बेटा डेढ़ साल का है..<br />
<br />
मैनें पूछा कि आपको कब से लग रहा है कि यह ऐसा कुछ कर रही है? वह बोला कि जब से हम यहाँ रहने आये हैं करीब सवा साल से... पहले तो यह गाँव में मेरे माँ बाप के पास ही थी.. मैं इसीलिए नहीं लाया था इसे क्योंकि मुझे पता था कि यह ऐसा ही करेगी और देखो इसने वही किया...<br />
मैनें कहा कि जब आपने इसे रंगे हाथों पकड़ा ही नहीं तब आप यह कैसे कह सकते हैं?<br />
<br />
वह बोला अरे मैडम ये बहुत चालाक है.. छुप कर ऐसा करती है.. मैनें कई बार दूर से छिप कर इसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन इसे पता चल जाता है तब यह नहीं बुलाती किसी को भी..<br />
मैनें अपने घर से अपनी माँ और बहन को भी बुलाया था इस पर निगाह रखने के लिए लेकिन उस समय भी यह लड़कों को नहीं बुलाती थी... लेकिन मुझे पता है कि यह पराये लड़कों से संबंध बनाती है.. आप इसी से पूछो और कोई ऐसी दवा दे दो इसे कि यह ये सब करना बंद कर दे.. अगर यह ये सब बंद नहीं करेगी तो मैं तो इसे इसके मायके भेज दूँगा...<br />
<br />
केस साफ़ सा ही लग रहा था मुझे लेकिन फिर भी मैनें उसकी पत्नी से अकेले में बात करना उचित समझा..<br />
<br />
वह अंदर आई...<br />
<br />
मैं कुछ बोलती उसके पहले ही वह रोने लगी... बोली मैडम मैं बहुत परेशान हो गई हूँ... यह जब तब इस बात को लेकर मुझे मारते पीटते हैं.. मैं ऐसा कुछ भी नहीं करती... सिसकियाँ भरते हुए बोली कि छोटा सा एक कमरे का मकान है... दो बच्चे मेरे पास हैं.. पास पड़ोस है मैडम.. मैं कर भी सकती हूँ क्या ऐसा? लेकिन इनको हमेशा मुझ पर शक रहता है... इनके इस स्वभाव के कारण ही मैनें तो सभी से बात करना भी छोड़ दिया है... मेरा तो मन करता है कि इन बच्चों को लेकर आत्महत्या कर लूँ...दो तीन बार तो यह मुझे मेरे मायके में भी छोड़ चुके हैं लेकिन मैडम उन लोगों का ही गुज़ारा नहीं होता ठीक से तो मुझे और मेरे बच्चों को वे कैसे रख सकते हैं? हर बार मुझे लौटा देते हैं ...उसकी रुलाई रुक ही नहीं रही थी..<br />
<br />
मुझे उस लड़की बातों पर विश्वास नहीं करने का कोई भी कारण नज़र नहीं आ रहा था...<br />
<br />
मैनें उसे पानी का गिलास दिया और सोचा कि अब मुझे काउंसलिंग से अलग जाकर इसे सलाह देनी ही पड़ेगी..<br />
<br />
मैनें पूछा तुम कितनी पढ़ी लिखी है?<br />
वह बोली इंटर किया है मैडम. और पढ़ना चाहती थी लेकिन घरवालों ने शादी करवा दी..<br />
<br />
मैनें कहा कि कोई काम कर सकती हो बाहर जाकर... उसने कुछ सेकंड सोचा और बोली कि हाँ मैडम कर सकती हूँ..<br />
<br />
मैनें कहा कि देखो तुम ठीकठाक पढ़ी लिखी हो और तुम्हारा मायका भी ठीक जगह है.. अगर तुम चाहो तो वहाँ किसी स्कूल में काम माँग सकती हो.. आजकल प्रायवेट स्कूलों में गरीब बच्चों की पढ़ाई भी होती है सो तुम अपने बच्चों को भी वहाँ पढ़ा सकती हो... इस तरह से तुम खुद भी आत्मनिर्भर बन जाओगी और तुम्हारे मायके वालों को भी बोझ नहीं लगोगी... और चाहो तो आगे की पढ़ाई भी कर सकती हो...<br />
और तुम्हारा पति तो तुम्हें मायके छोड़ने वाला ही है तो इसे एक बढ़िया अवसर समझो और जाओ... आत्मनिर्भर बनो..<br />
<br />
मैनें देखा कि यह सब बातें सुन कर उसकी उदास आँखों में एक आशा की किरण जगी... वह कुछ संयत हुई फिर दृढ़ स्वर में बोली कि मैडम, मैं समझ गई.. अब और इस नर्क में नहीं रहूँगी...<br />
<br />
मैनें कहा अब मुस्कुरा कर दिखाओ... आँखे अब भी भरी थीं उसकी लेकिन वह मुस्कुराई ...बहुत ही खूबसूरत और निश्छल मुस्कान थी उसकी..<br />
<br />
फिर मैनें कहा कि अब तुम बाहर जाओ और अपने पति को अंदर भेज दो..<br />
<br />
वह परेशान सा अंदर आया और बोला कि मैडम क्या बताया उसने? करती है न वह वो सब? आपने दवा लिख दी?<br />
<br />
मैनें कहा कि नहीं, मैनें उसे हर तरह से पूछा लेकिन मुझे कहीं से भी यह नहीं लगा कि वह कुछ ग़लत काम कर रही है... बल्कि अब मुझे लग रहा है कि आपको शक की बीमारी हो गई है और आपको इसकी दवा लेनी चाहिए.. यह बीमारी ठीक हो सकती है...<br />
<br />
इस पर वह बोला कि आप भी वही कह रही हो जो कल उन दूसरे वाले डॉक्टर ने मुझसे कहा था कि मुझे ही शक की बीमारी हो गई है...<br />
<br />
लेकिन मैं कह रहा हूँ मैडम कि बीमारी मुझे नहीं इसे है...आप लोग समझ ही नहीं रहे हो...<br />
<br />
उसे भरसक समझाने का प्रयास करने के बाद मैनें फिर सेशन खत्म करते हुए उस आदमी को कहा कि फिर आप इसे इसके मायके भेज ही दीजिए...<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-71656320450738756092018-04-08T00:51:00.002-07:002018-04-08T00:51:33.363-07:00It's okay, it happens <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
When I say<br />
<br />
" it's okay, it happens"<br />
<br />
They don't believe.<br />
<br />
I know my counseling has started working.<br />
<br />
After few days<br />
<br />
When they say<br />
<br />
They are feeling better.<br />
<br />
My work is done.. :)<br />
<br />
Sunita</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-74051971348179291472018-04-02T23:19:00.000-07:002018-04-02T23:19:11.425-07:00इनबॉक्स से... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इनबॉक्स से..<br />
<br />
( यह इनबॉक्सिया संवाद किसी की शिकायत नहीं है बल्कि एक छोटे से (सिर्फ उम्र में) दोस्त द्वारा पूछा गया बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न और मेरे द्वारा उसे दिया गया जवाब है...<br />
<br />
इस संवाद में एक स्वस्थ मज़ाक भी है इसलिए मुझे लगा कि इसकी पोस्ट बना कर आप सबको भी पढ़वाऊँ...तुषार की इजाज़त ले ली थी मैंने इसे सार्वजनिक करने के लिए ..:)..)<br />
<br />
तुषार : Hi aunty, how are you?<br />
<br />
Just wanted your thoughts on a specific trend i have been noticing of late in my circle.<br />
<br />
A lot of middle aged ladies in my circle - in their 40s and 50s - are kicking the bucket so early. Most of the times the reason is a heart attack, cardiac arrest, lung related ailments.<br />
<br />
Why would that happen so early? Why specifically women? Is it a trend that actually exists, or is it just in my head?<br />
<br />
Statistically men are more likely to die of heart problems, but I don't see that happening as much around me (may be because smoking and alcohol is not mainstream in the previous generation).<br />
<br />
Please don't mind me asking out of the blue. And please do take your own time, I understand you have your own things to take care of.<br />
It just felt like the kind of thing you would have wondered about, and have solutions to.<br />
<br />
Regards.<br />
<br />
मैं :Read.. Will reply later.. :)... लेकिन पहला कारण तो यही है कि लोग उन्हें आंटी बोलने लगे हैं... :P 😆😁<br />
<br />
तुषार : Galti se mishtake :D<br />
<br />
कुछ देर बाद<br />
<br />
मैं : हेलो तुषार,<br />
<br />
तुम्हारा तीसरा सवाल बिल्कुल वेलिड है.<br />
तुम्हारे पहले सवालों का एक दो शब्दों में उत्तर है<br />
<br />
"Improper ventilation"<br />
<br />
Ventilation in both sense literally as well as emotionally.<br />
<br />
Literally ऐसे कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति कम जागरूक हैं अपनी सोशल कंडिशनिंग के चलते... बाहर नहीं निकलतीं, व्यायाम नहीं करतीं और ठीक से खाना पीना नहीं करतीं.<br />
<br />
और emotionally ऐसे कि वे अपना मन कहीं खाली नहीं कर पातीं या अपने मन के मुताबिक काम नहीं कर पाती और कुंठित हो जाती हैं.<br />
<br />
उम्मीद है मैं तुम्हारी जिज्ञासा शांत कर पाई होऊंगी.. :)<br />
<br />
तुषार : Thanks a lot Sunita ji! It makes a lot of sense.<br />
I would love to share this with ladies in my circle, especially the part about social conditioning holding them back. It is somehow believed that women don't need to exercise that much, or that one doesn't need to pay heed to their cribbings - blatant lies! I have seen you tackle these topics in some of your status.<br />
<br />
After all, the only good thing that can come out of such tragedies is the learning of what shouldn't be done.<br />
<br />
Regards. :)<br />
<br />
मैं : Btw... You may call me Aunty.. I won't get heart attack... 😄<br />
<br />
तुषार : We need you to live long madam. :).. Chance kyu Lena...:)<br />
<br />
मैं : :D... Bless you<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-52732096760170034972018-04-01T01:27:00.002-07:002018-04-01T01:27:26.146-07:00कम्पूटर का ड्राइवर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमाए जेसा जी के बढ़ाना हो तो याए पढ़ लेओ...<br />
<br />
एक तरफ तो देश के डिजिटलाइजेशन पर ज़ोर दिया जा रहा है और दूसरी ओर मशीने भी इंसानी भ्रष्टाचार जैसे रोग से ग्रसित हो रही हैं...<br />
<br />
कल लैपटॉप चलते चलते बंद हो गया और फिर रीस्टार्ट हुआ तो उसमें से इंटरनेट गायब था...<br />
<br />
हम दसियों असफल कॉल लगाने के बाद अभी भरी दुपहरी में भागे भागे बीएसएनएल पहुंचे तो पता चला कि इसकी खराबी ठीक करने के लिए कोई जानकार बंदा चाहिएगा..<br />
<br />
हम सॉफ्टवेयर हार्डवेयर अनपढ़ों ने खूब माथापच्ची के बाद इसके डॉक्टर को बुलाया...<br />
<br />
उसने कहा कि इसका ड्रायवर उड़ गया..<br />
हमने कही कि उसके कोई पंख लगे थे जो उड़ गया?<br />
<br />
उनने कही कि नहीं मैडम इसका ड्रायवर डिवाइस में से गायब हो गया<br />
हमने कही कि ड्रायवर कोई नेता है क्या जो चुनाव होते ही गायब हो जाते हैं?<br />
<br />
उनने कही कि अरे मैडम ये समल्लो कि इसका ड्रायवर मर गया<br />
हमने कही कि ऐसे कैसे मर गया? पूरी बिजली तो खा रहा है<br />
<br />
उनने कही कि अरे मैडम कोई फाइल करप्ट हो गई होगी इसलिए ऐसा हुआ<br />
हमने कही कि लो बोलो इंसान तो इंसान फाइलें तक करप्ट होने लगीं अब तो...<br />
क्या होगा इस देश का?<br />
<br />
उनने कही कि लाइये दुई सौ रुपइया, हम नया ड्राइवर डाल देते हैं<br />
हम मरते क्या न करते... अब लैपटॉप चलाना है तो ड्राइवर को तो बिठाना ही पड़ेगा ना... काहे कि ये तो गाड़ी ही ऐसी है कि बिना ड्रायवर चलेगी ही नहीं... सो की अंटी ढीली और लगा लिया ड्रायवर को काम पर...<br />
<br />
लेकिन बता दें कि वो ड्रायवर साब अभी आराम फरमा रहे हैं और हमने ये दो किलोमीटर लंबी पोस्ट अपने मोबलिया से यहाँ फेसबुक पर छापी है... :)<br />
<br />
सुनीता<br />
<br />
यह पिछले साल की बात थी.. BSNL की किरपा से अभी कुछ दिनों पहले फिर से लैपटॉप ने चक्का जाम किया तो हमारे बाबा सरी सरी मनीष यादव जी 1008 ने कहा कि ड्राइवर हड़ताल पर चला गया होगा... फिर bsnl से डॉक्टर बुलाया.. फिर वह नया ड्राइवर अपॉइंट कर के गया...<br />
<br />
आज के on this day में फेसबुक ने यह पोस्ट फिर से दिखाई तो हमने भी यह पोस्ट फिर से आपको परोस दी है... 😄</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-75581536887375413802018-04-01T01:26:00.000-07:002018-04-01T01:26:18.145-07:00Relationship counseling 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
प्र. वह मुझसे छुपा नहीं रहा बल्कि खुलकर बता देता है कि वह मेरे अलावा किसी और से क्या बात कर रहा है किस हद तक जा रहा है.. लेकिन मुझे पता चल जाता है कि उसकी हद उसकी बताई हुई हद से आगे है...मेरे पूछने पर गुस्सा हो जाता है... मैं उसके दूर चले जाने के डर कर पूछना बंद कर देती हूँ... कुछ दिन सब ठीक चलता है... फिर कुछ दिन बाद वही सब शुरु हो जाता है... इस बीच लगता है कि मेरी तरफ़ से प्यार तो बना रहता है पर कुछ है भीतर जो दरकता जाता है...मैं बाँधना नहीं चाहती उसे पर खुद भी खुश होकर जीना चाहती हूँ... क्या करूँ?<br />
<br />
उ. तुम्हारा निर्णय मैं नहीं ले सकती... लेकिन तुम्हारी जगह मैं होती तो उसे साफ़ साफ़ बता कर एक टाइम लिमिट के बाद रिश्ते से निकल लेती..हर तरफ से कॉन्टेक्ट बंद कर देती उससे...<br />
<br />
कुछ दिन दर्द होता इस फैसले से लेकिन दोनों को सोचने का समय मिलता ... या तो फिर से लौटोगे अपने आप को बदल कर या नहीं... यदि फिर से लौटने पर फिर से वही सब हो रहा है तो अब दोनों को ठोस हल पता होगा...<br />
<br />
सुनीता</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-22773305270652165132018-04-01T01:24:00.002-07:002018-04-01T01:24:51.366-07:00केस स्टडी एक दस साल की बच्ची की <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
‘केस स्टडी - एक दस साल की बच्ची की’<br />
<br />
पिछले दिनों एक सायकियेट्रिस्ट द्वारा रेफ़र किया एक केस मेरे पास काउन्सलिन्ग के लिए आया ।<br />
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एक दस साल की बच्ची जिसे पिछले दो महीने से बहुत अधिक सेक्सुयल विचार आने लगे हैं और साथ ही एक और विचार बार बार आने लगा जिसमें उसे लगता है कि उसकी माँ उस से दूर चली जाएगी।<br />
<br />
यह दो विचार उसे इस हद तक आने लगे कि वह एबनॉर्मल हरकतें करने लगी। हिंसक भी होने लगी है। अपने माँ पापा को भी वह साथ नहीं देख सकती है अब। यदि कहीं दूर बैठी हो तब भी उसके कान उसकी माँ की बातों पर ही लगे होते हैं। अपने आप को कमरे में कनफाइन करने लगी है वह। यूं परिवार में सबसे बात करती है लेकिन माँ पर सबसे अधिक गुस्सा होती है। एक बार तो उसने किचन में जाकर चाकू हाथ में ले लिया था और गुस्से में बोलने लगी की मैं अपने आप को मार लेती हूँ।<br />
<br />
इन सब लक्षणों के साथ उसके माँ पापा और दादी उसे मनोचिकित्सक के पास लेकर गए। उन्होने सिवियर एङ्ग्जायटी डिसोर्डर डायग्नोस किया और दवा लिख कर मेरे पास काउन्सलिन्ग के लिए रेफ़र कर दिया।<br />
<br />
मैंने जब डिटेल में परिवार से बात की तब यह जाना कि घर में बच्ची का एक पाँच साल का भाई भी है और एक कज़िन है जो तेरह चौदह साल की है।<br />
<br />
मैंने सेक्सुयल हेरेसमेंट के बारे में भी जानकारी ली लेकिन माता पिता का कहना था कि एस कुछ भी नहीं हुआ है उसके साथ। हाँ, एक बार उसने स्कूल के बाथरूम में दीवार पर किसी के द्वारा वेजाइना को लेकर बनाया हुआ एक चित्र देख लिया था और वहाँ लिखी एक अश्लील सी पंक्ति पढ़ ली थी और वह बार बार उसके मन में घूमती रहती है। साथ ही पिता ने यह भी बताया कि उस बच्ची ने मोबाइल पर कुछ पॉर्न वीडियो भी देख लिए थे। सेक्सुयल विचारों के बारे में तो ये वजहें मिल गयी थीं लेकिन मेरा कंसर्न अभी भी यह जानने में था कि वह माँ को लेकर इतनी असुरक्षित क्यों है? क्यों वह माँ को अपने से पाँच मिनट के लिए भी दूर नहीं होने देना चाहती? मेरी नज़र में यह अधिक बड़ी वजह थी उसकी एङ्ग्जायटी और एबनोरमल बिहेवियर की।<br />
<br />
बच्ची से अकेले में बात करने पर उस बच्ची ने यही कहा बार बार कि जब भी माँ से दूर होने का विचार आता है और डर लगने लगता है तब सु सु में अजीब सा होने लग जाता है।<br />
मुझे देख कर बोली कि आप यह तिलक वाली बिंदी हटा दो । मैंने कहा क्यूँ, तो बोली कि मुझे डर लग रहा है। फिर और बात करने पर उसने बताया कि मैं जब भी किसी मोटी औरत को देखती हूँ तो मुझे लगता है कि यह प्रेग्नेण्ट है, अब इसके बच्चा होगा और मेरा मम्मी मुझे अकेली छोड़ कर इसके फंक्शन में चली जाएगी। और दो चार बातें इसी तरह की करने के बाद फिर से मेरी तरफ देख कर बोली कि ये आपके सफ़ेद बाल हैं न इनको देख कर मुझे लग रहा है कि अब आप मर जाओगी और मेरी मम्मी आपके तीये की बैठक में आएगी मुझे छोड़ के ( :) )।<br />
<br />
इस तरह से उससे और भी खूब सारी बातें की मैंने समस्या की जड़ तक पहुँचने के लिए। उसने मुझसे पूछा कि पीरियड्स में बहुत दर्द होता है न?<br />
इस पर मैंने उस से पूछा कि तुम्हें पीरियड्स होने लगे हैं क्या और तुम्हें यह सब किसने कहा तो बोली कि नहीं मुझे नहीं हुए अभी लेकिन मेरी कज़िन ने बताया कि बहुत दर्द होता है। इस पर मैंने उसे डिटेल में पीरियड्स के बारे में समझा कर उसकी गलतफहमियाँ दूर की। । और फिर अंत में एक और अहम बात उसने यह बताई उसने कि जब भी मैं मम्मी की कोई बात नहीं मानती हूँ तो मम्मी कहती है कि वो मुझे छोड़ कर चली जाएगी।<br />
<br />
जब मैंने इसी क्रम में परिवार से बात की तो पाया कि एक वजह तो उसके भाई का आना भी है जिसके आने के बाद उसकी माँ का ध्यान उस पर से कम हो गया। सबसे बड़ी वजह तब पता चली जब मैंने सबसे अलग अलग बात की। <br />
<br />
बातों बातों में उसकी दादी ने बताया कि उस बच्ची कि माँ उसे खुद ही अपने से अलग नहीं करती । जब तक दूसरा बच्चा नहीं आया तब तक यानि बच्ची के पाँच साल की होने तक तो उसे बिलकुल भी अकेला नहीं छोड़ती थी। अभी भी उसे हमेशा अपने साथ रखती है। माँ को टीवी सीरियलों का बहुत शौक है और बच्ची को भी अपने पास बैठा कर ही वह सास बहू वाले सीरियल देखती है। स्कूल से आने के बाद माँ उसे लेकर सो जाती है और शाम को टीवी देखने बैठ जाती है। फिर जब माँ काम में लगती है तो उस बच्ची को मोबाइल दे देती है।<br />
<br />
माँ से बात करने पर खुद माँ ने भी माना कि वह बच्ची को पढ़ाई के लिए भी ज़ोर देती है और उसे शाम को बाहर खेलने के लिए भी नहीं जाने देती है।<br />
<br />
अब समस्या का सिरा पकड़ में आ गया था मेरे सो उसके अकॉर्डिंग काउन्सलिन्ग की। बच्ची की काउन्सलिन्ग के साथ माता पिता की भी काउन्सलिन्ग की जिसमें मुख्यतः बच्ची को एक डेढ़ घंटे घर के बाहर जाकर बच्चों में खेलना अनिवार्य करवाया। और भी कई सजेशन्स दिये।<br />
<br />
यह केस मुझे आप सब से बांटना ज़रूरी लगा। कहीं न कहीं आजकल पेरेंटिंग में बहुत गड़बड़ होने लगी है। इस तरह की पेरेंटिंग को हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग भी कहा जाता है जिसमें माता पिता मोह की अति के कारण बच्चे को अपने से दूर नहीं कर पाते और जिसका खामियाजा बच्चे को भुगतना पड़ता है।<br />
<br />
सुनीता<br />
<br />
एडिट नोट : यह पोस्ट सिर्फ जागरूकता बढ़ाने के लिए लिखी गयी है. कृपया इसे किसी से भी रिलेट करने से बचें प्लीज़...</div>
Pummyhttp://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3117400073792561593.post-12749682984694953822018-04-01T01:22:00.002-07:002018-04-01T01:22:40.283-07:00Relationship counseling <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
प्र. हम तीन साल से साथ थे. वह बहुत अच्छा लड़का है. बहुत केयरिंग भी था. बस एक ही कमी है उसकी कि वह बहुत गुस्सैल है लेकिन प्यार भी बहुत करता था. मैं उसके बिना और वह मेरे बिना नहीं रह पाते थे . हम फोन पर एक दूसरे की सांसें सुन कर सोते थे . दो तीन बार हमने शारीरिक संबंध भी बना लिये जब वह मेरे शहर आया. वह दूसरे शहर में है. इस बीच शादी की बात पर घरवालों को लेकर कुछ यूँ हुईं बातें कि हममें लड़ाई झगड़ा होने लगा और अब हमारा ब्रेक अप हो गया.<br />
उस ब्रेकअप से मुझे ज्यादा परेशानी नहीं लेकिन मुझे इस बात की बहुत गिल्ट फीलींग हो रही है कि शारीरिक संबंध बना लेने से मैं गंदी हो गई हूँ. अपवित्र हो गई हूँ. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. मैं इस गिल्ट फीलींग के साथ नहीं रहना चाहती. मर जाना चाहती हूँ.<br />
<br />
उ. देखो जब तुम उसके साथ रिश्ते में थीं तब तुम प्रेम में थीं और प्रेम सम्पूर्ण समर्पण मांगता है. तुम उसके साथ शादी के लिए भी आश्वस्त थीं. भावनाओं के बहाव में तुमने शारीरिक संबंध बना लिये थे. यह तुम्हारी 'गलती' नहीं है. यह बहुत स्वाभाविक था.<br />
<br />
सबसे पहले तो अपने आप को इस गिल्ट से बाहर निकालो. शरीर एक टूल मात्र है. तुमने देह को बहुत ज्यादा तवज्जो दे दी.<br />
<br />
इसमें भी तुम्हारी गलती नहीं है .हमारे समाज में लड़कियों को खासकर सिखाया ही यही जाता है बचपन से कि तुम्हारा शरीर तुम्हारे खुद के व्यक्तित्व से ज्यादा अहम है. यही बात अवचेतन में इस कदर बिठा दी जाती है कि जब यदि कोई पुरुष किसी लड़की को गलत ढंग से छू ले तो वह उस पर खुलकर चर्चा तक नहीं कर पाती अपने घरवालों खासकर पिता या भाई के सामने भी. क्योंकि यदि वह कुछ बताती है तो उसे ही जज किया जाने लगता है इसलिए इस वाकये को भी खुद का ही दोष समझती है और प्रतिकार तक नहीं कर पाती तो तुम्हारे केस में तो तुम्हारी सहमति से संबंध बना था. और इसलिए तुम इस बात को अपनी गलती मान रही हो.<br />
यह कहीं से भी तुम्हारी गलती नहीं है. तुमने पहले कभी अपनी देह को लेकर इस तरह सोचा नहीं था इसलिए तुम परेशान हो रही हो.<br />
<br />
देह से ऊपर उठकर सोचोगी तो पाओगी कि कि तुम मात्र एक देह नहीं उसके अलावा बहुत कुछ हो. समझीं?... नाओ चीयर अप एंड स्माइल.<br />
<br />
और एक बात समझ लो कि सुसाइड करना समस्याओं का अंत नहीं बल्कि तुम्हारे अपनों के लिए समस्याओं की शुरुआत है.<br />
<br />
सुनीता<br />
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केस स्टडी - 102 नॉट आउट के बहाने<br />
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दो तीन साल पहले की बात है.. मुझे एक लगभग बहत्तर वर्षीय अंकल की काउंसलिंग के लिए रैफरल आया... अंकल को अस्थमा है और वो साँस की तकलीफ को लेकर अस्पताल में भर्ती थे करीब पंद्रह दिनों से ...अब उनके सब टेस्ट नॉर्मल आ रहे थे लेकिन अंकल डर के मारे डिस्चार्ज नहीं ले रहे थे... केस मुझे रैफर हुआ...<br />
<br />
मैंने अंकल से बात कर उनके डर की वजह जाननी चाही तो उन्होनें बताया कि उनकी लगभग नब्बे वर्षीया माता जी भी वहीं महिला वार्ड में भर्ती थीं... अंकल चूंकि अविवाहित थे तो घर पर माँ बेटे के अलावा और कोई नहीं था...एक भाई और है उनका लेकिन वो अलग रहता है अपने परिवार के साथ...<br />
<br />
करीब दो तीन दिन लगातार काउंसलिंग कर मैं शायद उन अंकल का डर दूर करने में कामयाब हुई... वे डिस्चार्ज ले कर घर चले गए... दो एक दिन बाद उनकी मम्मी भी ठीक हो कर घर चली गईं..<br />
<br />
वे अंकल फिर दो बार मुझसे मिलने ओपीडी में भी आए... काफ़ी ठीक लगे...<br />
<br />
फिर लगभग महीने भर बाद वे अपनी मम्मी और अपने छोटे 65 वर्षीय भाई के साथ मुझसे मिलने आए...<br />
<br />
पता चला कि दोनों भाई अपनी मम्मी मने उन नब्बे वर्षीया आंटी की काउंसलिंग करवाने उन्हें मेरे पास लाए थे...<br />
<br />
उन दोनों की शिकायत थी कि मम्मी को कुछ याद नहीं रहता...:)<br />
<br />
(आंटी जब मेरे चेम्बर में दाखिल हुई थीं तब देखने में अस्सी से ज़्यादा की नहीं लग रही थीं)<br />
<br />
मैंने आंटी से बात करना शुरू किया तो बोलीं कि बेटा अब नब्बे की हो रही हूँ तो यह सब तो होगा ही न? कुछ देर को भूल जाती हूँ मैं लेकिन फिर कुछ देर बाद मुझे याद भी तो आ जाता है...<br />
<br />
मैंने आंटी से उनका खाने पीने आदि के बारे में पूछा तो पता चला कि आंटी और उनके बहत्तर वर्षीय पुत्र मिलकर खाना बनाते हैं.. आंटी घर में ही जूस आदि बनाकर पीती हैं.. समय समय पर ड्राइ फ्रूट्स आदि लेती रहती है और जितनी बन पड़े घर में ही वॉक कर लेती हैं.<br />
<br />
आंटी ने बातचीत के दौरान खूब हंसाया भी...<br />
<br />
उनके छोटे बेटे की शिकायत थी कि मम्मी को कितनी बार कहा है कि मेरे घर में चलो.. वहीं रहो.. तो आंटी तपाक से बोलीं कि मेरी इसकी बहू से नहीं पटती... :)<br />
मैं तो अपने घर में मस्त हूँ..<br />
<br />
इसी तरह बातें होती रहीं.. मैं कहीं से भी यह नहीं समझ पा रही थी कि उन आंटी को काउंसलिंग की ज़रूरत है कहाँ?<br />
<br />
शायद आंटी ने मेरे मन की बात पढ़ ली थी तो बोलीं कि बिटिया तुम तो इन दोनों की काउंसलिंग करो कि ये लोग अपने खुद को तो ठीक से संभाल लें...<br />
<br />
इस बड़े को देखो.. हर वक़्त अपने साथ ऑक्सिजन सिलेंडर लिए फिरता रहता है और यह छोटा शरीर में ढेर सारी बीमारियाँ लिए घूम रहा है मोटा कहीं का... काउंसलिंग की ज़रूरत तो इन लोगों को है..<br />
<br />
मैंने हँसते हुए कहा कि आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं आंटी.. 😄<br />
<br />
***<br />
<br />
यह मेरी लाइफ का एक लर्निंग सेशन था... उन हंसमुख, जिंदादिल और मन से युवा नब्बे वर्षीया आंटी से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला...<br />
<br />
भगवान करे कि आंटी 102 नॉट आउट रहे...<br />
<br />
आमीन.. :)<br />
<br />
सुनीता</div>
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उसने कहा था- मैं जा रहा हूँ<br />
मैनें कहा- जाओ<br />
<br />
मुझे पता था कि उसे पता है कि प्रेम में स्त्रियाँ विलोम में बात करती हैं<br />
<br />
उसने कवि केदार को भी खूब पढ़ा है<br />
'यह जानते हुए कि जाना हिंदी की सबसे खौफ़नाक क्रिया है'<br />
<br />
वह चला गया<br />
<br />
सुनीता<br />
<br />
#श्रद्धांजलिकविकेदार</div>
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कल अनुराधा की वॉल पर सुमेर सिंह जी के साथ हुए मस्ती भरे संवाद ने मेरी ज़िंदगी का यह एपिसोड याद दिला दिया मुझे...अब इस वाकये को याद कर खूब हँसी आती है.. 😃<br />
<br />
तो हुआ यूँ था कि बचपन में, मेरी बहन जो मुझसे लगभग तीन साल बड़ी है, मम्मी ने उसके बाल बहुत चाव से लम्बे किये हुए थे या शायद उसी ने किये हों लेकिन उन बालों की बहुत केयर लेनी होती थी और मम्मी का सुबह का काफ़ी सारा समय उसकी चोटियाँ बनाने में लग जाता था तो शायद इसी वजह से मम्मी ने मेरे बाल बचपन से ही बॉयकट रखे थे... या कि शायद मम्मी माँ थी तो पूत के पग पालने में ही दिखने लग गये होंगे कि इस लड़की में लड़कियों वाले तो कोई गुण हैं नहीं तो दिखने में भी इसे लड़का ही बना कर रखने में कोई हर्ज नहीं है... तो बालों के साथ साथ मेरा पहनावा भी अधिकतर लड़कों वाला ही हुआ करता था... मेरा यह डिस्पोज़िशन गड़बड़ाया हुआ होने की वजह से ही शरीर में जब तक हॉरमोनल गड़बड़ नहीं हुई तब तक कॉलोनी के सभी बच्चों पर बाकायदा धौंस भी जमाती थी मैं बोले तो पूरी दादागिरी करती थी....जान पहचान वाले अंकल लोग मुझे "भाई साब" ही पुकारते थे... भाई भी मरते दम तक मुझे भाईसाब ही बोलता हुआ गया...<br />
<br />
खैर... मेरे खेल भी लड़कों वाले ही रहे.. जैसे फुटबॉल, गिल्ली डंडा, साइकिलबाजी आदि आदि...<br />
कक्षा छह से आठ तक लड़कियों के स्कूल में पढ़ी जहाँ मनीषा की मम्मी हमारी बड़ी बहनजी मने प्रिंसिपल थीं वहाँ भी हर कल्चरल प्रोग्राम में डांस हो या नाटक, मैं लड़के वाला पार्ट प्ले करती थी...<br />
<br />
अब आया आठवीं का अंत और नवीं की शुरुआत कि तभी इस नालायक शरीर ने भी अंदरूनी और बाहरी तौर पर अपने रंग बदलने शुरू किये... तब ही परिपाटी के अनुसार मुझे भी साइंस लेने का चस्का चढ़ा.. हालांकि बायलॉजी का ब भी पता नहीं था मुझे लेकिन लेनी साइंस बायलॉजी ही थी क्योंकि अपनी बड़ी बहन ( जो आज एक प्रसिद्ध आई वी एफ़ डॉक्टर हैं) के पास भी वही थी... हालांकि फिर बहन जी ने इसमें बॉटनी और ज़ुलॉजी में बनने वाली मोटी मोटी फाइलों की वजह से मुझे सजेस्ट किया कि मैं दसवीं तक साइंस मैथ्स रखूँ और फिर मन करे तो ग्यारहवीं में बायलॉजी ले लूँ... (जो कि मैनें उस को फाइलें बनाते वक्त रोते देख बाद में भी नहीं लिया...)<br />
<br />
अरे विषयांतर हो रहा है.. फिर ट्रैक पर आती हूँ... तो साहब अब चूंकि साइंस तो गर्ल्स स्कूल में थी नहीं सो अब हम भी चले को एड स्कूल में कक्षा नौ में पढ़ने .. तो जैसा कि मैनें बताया कि मेरी 'लड़की' बनने की शुरुआत हो चुकी थी और अब माँ की डाँट और लेक्चर वगैरह के कारण अपने खेल भी कुछ बदलने लगे थे... अब 'सहेली' के साथ एल्यूमीनियम के किचन सेट में घर के पीछे बगीचे में छोटे पत्थरों पर छोटा चूल्हा बना कर उस पर ज़रा सा पर रीयल वाला खाना पकाना शुरु कर दिया था ...सहेली हमारे ड्रायवर साहब की बेटी थीं बिन माँ की सो उसे सब आता था... मेरे लिए यह 'खेल' बहुत हैरानी भरा था... (आज तक भी है... 😜)...अब आम के पेड़ पर चढ़ने पर माँ की डाँट खानी होती थी...अब दिन रहते घर लौटने की हिदायत थी सो अब शामें रेडियो पर विविध भारती सुनने में बीतने लगी थीं और जैसे कि मैनें कल की अपनी पोस्ट में लिखे थे वैसे वैसे गाने कानों में पड़ने लगे थे तो भावनायें भी कब तक जाग्रत नहीं होतीं? हारकर बेचारियों को जागना पड़ा..<br />
<br />
अब साहब पहली बार 'लड़कों' के संपर्क में आई मैं... काहे कि अभी तक तो लड़कों को कभी अपने से अलग महसूस ही नहीं किया था मैनें..<br />
<br />
अब लड़की सुलभ लज्जा भी आने लगी थी.. विज्ञान के माटसाब ने भी रिप्रोडक्शन वाला चैप्टर घर से पढ़ कर आने को कहा था.. फिल्मों में दो फूलों के पास आने को देख ही चुके थे हम कि तभी एक अनजानी सी अनुभूति हुई...<br />
<br />
कक्षा में हम गिनती की लड़कियाँ थीं कारण कि उन दिनों एक तो बहुत कम लड़कियाँ साइंस लेती थीं और जो लेती थीं उनमें भी गणित बहुत कम लड़कियाँ लेती थीं हमारे कस्बा ए निम्बाहेड़ा में... तो हम चंद लड़कियाँ और ढेर सारे लड़के... हमें सबसे आगे की बैंच पर बिठाया गया सो अपनी कक्षा के लड़कों पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं गया... वैसे भी ज्यादातर ध्यान तो गणित और फ़िज़िक्स ही खा जाते थे क्लास में...<br />
<br />
इंटरवल में क्लास से बाहर पेड़ के नीचे हम स्कूल की अन्य लड़कियों के साथ खाना खाते थे... तो उसी किसी इंटरवल में 'वो' नज़र आया... उसे देखते ही दिल में हूक सी उठी... फिल्में तो मैं देखती नहीं थी तब... डरती थी कि जो कुछ परदे पर हो रहा है वह असली में हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज भी मैं आशुतोष जी की फिल्में देखने में डरती हूँ... तो उन दिनों दीदी और मनीषा की वजह से किताबें पढ़ना भी शुरु किया था... उसी क्रम में 'मायापुरी' भी पढ़ने रादर देखने लगी थी... मुझे धर्मेंद्र बहुत पसंद थे तब और 'वो' देखने में मुझे बिल्कुल धर्मेंद्र लगा था... बल्कि और गोरा चिट्टा कंजरी सी आँखों वाला...<br />
एक नज़र में इतना भा गया वह मुझे कि अब आँखे हर जगह हर वक्त उसे तलाशने लगीं....स्कूल में प्रेयर के वक्त... छुट्टी के समय... बाज़ार में... रास्ते पर... हर जगह...हर वक्त.... .वह तब दसवीं में था... उसका नाम एक फेमस पेंटर के नाम पर है... (नाम यहाँ नहीं लिखूंगी... 😜...फेसबुक के साइड इफैक्ट भी तो हैं... 😃..)<br />
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तो साहब अब जिस दिन वह ना दिखे अपन बेचैन... दीवानगी बढ़ती जा रही थी कि तभी पता चला कि उसकी बहन मेरी एक और सहेली की सहेली है... तो अब शैतानी दिमाग तो शुरु से ही था अपना सो जुगत लगाई और उस बहन से दोस्ती गाँठी ताकि उसके घर आ जा सकें...(बाकायदा ननद वाली फीलींग थी उस बहन के लिए मेरे मन में... 😃)...फिर यह सिलसिला भी शुरु किया... कभी लंच उसके घर करने कभी पानी पीने के बहाने उसके घर जाने लगे... हालांकि वह कमबख़्त वहाँ बहुत ही कम नज़र आता था...<br />
ख़ैर... इसी एकतरफ़ा देखादेखी में दिवाली आ गई... अब तक मैं चूंकि पूरी लड़की बन चुकी थी तो दिवाली पर रंगोली बनाने का काम अपने जिम्मे लिया... तब हमारे यहाँ सूखे रंगों से नहीं बल्कि गेरू के बैक ग्राउंड पर चूने से चित्रकारी करी जाती थी रंगोली के नाम पर...<br />
<br />
तो जी हमने खूब जतन से रंगोली बनाई... और दीवानगी की इंतिहा देखिये कि उस रंगोली के बॉर्डर में तीन चार जगह बारीक अक्षरों में अंग्रेजी में उसका नाम लिख दिया... अपने को अपन खूब होशियार समझते थे कि भई अपन ने तो उसके नाम को डिज़ाइन के साथ मर्ज कर दिया है तो कोई और समझ ही नहीं पायेगा...<br />
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तो यूँ रंगोली पूरी कर अपन तैयार होने चले गए... तैयार हो ही रही थी कि बहन जी की आवाज़ आई.. पम्मू, इधर आ... मुझे लगा कि कुछ कमी रह गयी है रंगोली में शायद इसलिए बुला रही है... मैं दौड़कर उसके पास गई तो उसने बिल्कुल वहीं 'उसके' नाम पर इशारा करते हुए पूछा कि यह क्या है?<br />
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मेरा मुँह झक्क सफेद हो गया... चोरी पकड़ी गई थी.... झूठ बोलना कभी सिखाया नहीं गया था सो जो भी रामकहानी थी उसे सुना दी... वह शुरु से ही धीरू भाई अंबानी है बोले तो धीर गंभीर.... तो उसने मुझे शांति से कहा कि देख पम्मू... यह लड़का मेरे साथ मेरी क्लास में पढ़ता था और अब देख तेरे साथ तेरी क्लास तक पहुँचने वाला है... तो अब तू ही देख ले कि तू शकल पर जाना चाहती है या अकल पर? और फिर इसके साथ ही उसने समझाया कि तेरी फीलींग्ज़ एकदम नॉर्मल हैं... ऐसा हो जाता है लेकिन यही समय है जब भटक भी सकते हैं या फिर बन भी सकते हैं..आदि आदि इत्यादि.....<br />
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बस्स्स्स...अपनी उस एकतरफ़ा प्रेम कहानी का शटर वहीं गिर गया... तुरंत चूने की कलम उठाई और उसका नाम काट पीट कर एक नई डिज़ाइन क्रियेट कर दी और फिर तब तक इस प्यार श्यार के लफड़े में नहीं पड़ी जब तक कि पांडे जी नहीं मिले..<br />
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पांडे जी वाली कहानी फिर कभी..... :)<br />
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सुनीता </div>
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